ठाकरे बंधुओं की बड़ी सियासी वापसी! हिंदी थोपने के फैसले के खिलाफ राज-उद्धव एकजुट

महाराष्ट्र में प्राथमिक स्कूलों पर हिंदी थोपे जाने की नीति को रद्द करवाने के बाद अब सियासी रंगत चढ़ने लगी है. शनिवार को दो दशकों बाद शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) अध्यक्ष राज ठाकरे एक ही मंच पर दिखेंगे.

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महाराष्ट्र में प्राथमिक स्कूलों पर हिंदी थोपे जाने की नीति को रद्द करवाने के बाद अब सियासी रंगत चढ़ने लगी है. शनिवार को दो दशकों बाद शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) अध्यक्ष राज ठाकरे एक ही मंच पर दिखेंगे. यह 'विजय सभा' मुंबई के वर्ली स्थित NSCI डोम में सुबह 10 बजे आयोजित होगी, जहां दोनों भाई महाराष्ट्र सरकार के यू-टर्न का जश्न मनाएंगे.

इस मंच को स्थानीय निकाय चुनावों से पहले ठाकरे बंधुओं की सियासी नजदीकियों का संकेत माना जा रहा है. कांग्रेस जहां इस सभा से दूरी बनाए हुए है, वहीं NCP (SP) से शरद पवार और कांग्रेस नेता हर्षवर्धन सापकाल भी इस कार्यक्रम से अनुपस्थित रहेंगे.

क्या है महाराष्ट्र की तीन-भाषा नीति विवाद?

राज्य सरकार ने अप्रैल 2024 में घोषणा की थी कि कक्षा 1 से 5 तक मराठी और इंग्लिश माध्यम के स्कूलों में हिंदी भाषा तीसरी अनिवार्य भाषा होगी. यह फैसला राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत लिया गया था. हालांकि विपक्ष के दबाव के बाद 18 जून को सरकार ने संशोधित प्रस्ताव जारी कर कहा कि हिंदी 'डिफॉल्ट' भाषा होगी, लेकिन यदि किसी कक्षा में 20 से अधिक छात्र अन्य भारतीय भाषा की मांग करें, तो वह विकल्प भी स्वीकार्य होगा.

विरोध और वापसी: सरकार का यू-टर्न

24 जून को एक समीक्षा समिति गठित की गई और दबाव बढ़ने पर सरकार ने इस विवादास्पद नीति को 30 जून को पूरी तरह रद्द कर दिया. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि एक नई समिति बनाई जाएगी, जो यह तय करेगी कि छात्रों के लिए किस कक्षा में कौन-सी भाषा उचित होगी.

कांग्रेस ने क्यों बनाई दूरी?

कांग्रेस ने इस नीति का विरोध तो किया लेकिन ठाकरे बंधुओं की साझा रैली से दूरी बना ली. सूत्रों के मुताबिक, BMC चुनाव में गैर-मराठी वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस कोई जोखिम नहीं लेना चाहती. उद्धव और राज का एक मंच पर आना सियासी रूप से बड़ा संकेत है. जहां एक ओर शिवसेना (UBT) महाराष्ट्र की रीजनल राजनीति को फिर से मजबूत करना चाहती है, वहीं राज ठाकरे की MNS को भी एक नई प्रासंगिकता की तलाश है. आने वाले स्थानीय निकाय चुनाव में यह गठजोड़ भाजपा के लिए नई चुनौती बन सकता है.