6 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में एक चौंकाने वाली घटना हुई जब वकील राकेश किशोर ने मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई (CJI Gavai) की ओर जूता फेंकने की कोशिश की. इस हरकत से अदालत में अफरातफरी मच गई और पूरे न्यायिक तंत्र में हैरानी फैल गई.
घटना के कुछ दिन बाद जब सुप्रीम कोर्ट में वनशक्ति फैसले पर पुनर्विचार याचिका की सुनवाई चल रही थी, तो सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायण ने पुराने मामलों का जिक्र किया. तभी CJI गवई ने शांत भाव से कहा, “जो हुआ वो अब हमारे लिए एक भूला हुआ अध्याय है.” उनका मतलब साफ था. कोर्ट अब उस घटना से आगे बढ़ चुकी है.
हालांकि, उसी बेंच के दूसरे जज उज्जल भुईंया ने अलग राय जताई. उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि पूरे संस्थान पर हमला था. इसे भूलना कोर्ट की गरिमा को ठेस पहुंचाना होगा.” उन्होंने यह भी कहा कि वह किसी भी तरह की माफी स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि यह घटना पूरे न्यायिक तंत्र के सम्मान पर चोट थी.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इस घटना को “अक्षम्य” बताया, लेकिन साथ ही कहा कि कोर्ट ने जिस संयम और गरिमा से इसे संभाला, वह प्रेरणादायक है. उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में भी अदालत का धैर्य और संतुलन भारतीय न्यायपालिका की ताकत को दिखाता है.
यह पूरी घटना खजुराहो मंदिर में भगवान विष्णु की टूटी मूर्ति को पुनर्स्थापित करने की याचिका से जुड़ी थी. CJI गवई ने इस मामले को ASI (पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग) के अधिकार क्षेत्र का बताते हुए सुनवाई से इनकार कर दिया था. इस टिप्पणी से वकील राकेश किशोर नाराज हो गए और कोर्ट में जूता फेंकने की कोशिश कर बैठे.
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि वह इस घटना को पीछे छोड़ चुके हैं. “अब वो अध्याय हमारे लिए इतिहास बन चुका है, हम आगे बढ़ चुके हैं.” उनका शांत और संतुलित रुख एक बार फिर दिखाता है कि न्यायपालिका केवल निर्णय ही नहीं देती, बल्कि संयम और सहिष्णुता की मिसाल भी पेश करती है.
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