Navratri 2025: नवरात्रि में हलवा-पूरी और काले चने का प्रसाद क्यों चढ़ाया जाता है?

Navratri 2025: नवरात्रि में हलवा-पूरी और काले चने का प्रसाद धार्मिक, सांस्कृतिक और स्वास्थ्य कारणों से दिया जाता है. यह कन्या पूजन का हिस्सा होने के साथ-साथ शरीर और मन दोनों के लिए फायदेमंद है.

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Navratri 2025: नवरात्रि का पर्व मां दुर्गा की शक्ति की आराधना का प्रतीक है. नौ दिनों तक देवी के विभिन्न रूपों की पूजा के बाद अष्टमी और नवमी पर कन्या पूजन किया जाता है. इस दिन छोटी कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर पूजित किया जाता है और उन्हें हलवा, पूरी और काले चने का प्रसाद अर्पित किया जाता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हर बार यही प्रसाद क्यों बनाया जाता है? इसके पीछे धार्मिक, सांस्कृतिक और स्वास्थ्य से जुड़े गहरे कारण हैं.

भारतीय परंपरा में भोजन को अन्नदेवता माना गया है. कन्या पूजन के अवसर पर दिया गया भोजन देवी अन्नपूर्णा का आशीर्वाद समझा जाता है. हलवा-पूरी और चने का प्रसाद इसलिए चुना गया क्योंकि यह अन्न और पोषण दोनों का प्रतीक है. मान्यता है कि इस भोग को अर्पित करने से घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती और परिवार पर मां अन्नपूर्णा की कृपा बनी रहती है.

सात्विकता और शुद्धता का प्रतीक

कन्या पूजन में बनाया जाने वाला प्रसाद केवल स्वाद के लिए नहीं, बल्कि सात्विकता और पवित्रता का संदेश भी देता है.

पूरी – गेहूं के आटे से बनी और बिना प्याज-लहसुन की. हलवा – सूजी, घी और शक्कर से तैयार, जो समृद्धि का प्रतीक है. काले चने – प्रोटीन और ऊर्जा का स्रोत.

ये तीनों व्यंजन सरल, सात्विक और पवित्र माने जाते हैं, जो कन्या पूजन की मूल भावना के साथ मेल खाते हैं.

सेहत के नजरिए से संतुलित प्रसाद

धार्मिक दृष्टि के साथ-साथ यह प्रसाद पोषण की दृष्टि से भी बेहद संतुलित है.

काले चने – प्रोटीन, फाइबर और आयरन से भरपूर, जो शरीर को मजबूती देते हैं. हलवा – तुरंत ऊर्जा देने वाला आहार, खासकर बच्चों के लिए लाभकारी. पूरी – पेट भरने वाला मुख्य भोजन, जो प्रसाद को संतुलित आहार बनाता है.

इस तरह यह परंपरा बच्चों और कन्याओं के स्वास्थ्य की भी देखभाल करती है.

सांस्कृतिक और भावनात्मक पहलू

हलवा-पूरी ऐसा व्यंजन है जिसे हर घर में आसानी से बनाया जा सकता है. इसे श्रद्धा और प्रेम से तैयार किया जाता है और यह "मां के हाथ के खाने" जैसी अनुभूति कराता है. इसमें केवल स्वाद ही नहीं, बल्कि भावना और आस्था की मिठास भी शामिल होती है. यही कारण है कि यह व्यंजन पीढ़ियों से कन्या पूजन का हिस्सा बना हुआ है.

प्रसाद और मां दुर्गा के नौ रूप

हलवा, पूरी और चने को मां दुर्गा के नौ स्वरूपों से जोड़कर भी देखा जाता है.

घी और शक्कर (हलवा) – आनंद और समृद्धि का प्रतीक. काले चने – शक्ति और दृढ़ता का द्योतक. पूरी – संतुलन और पूर्णता का संकेत.

इस प्रकार यह प्रसाद नवरात्रि की नौ दिनों की साधना को एक समापन और पूर्णता प्रदान करता है.

कन्याओं को देवी मानने की परंपरा

भारतीय संस्कृति में छोटी कन्याओं को पवित्रता और मासूमियत का प्रतीक माना गया है. उन्हें देवी का रूप मानकर भोजन कराना इस आस्था को दर्शाता है कि ईश्वर सादगी और सरलता में वास करते हैं. हलवा-पूरी और चने जैसे सरल व्यंजन इस भाव को और भी गहराई से प्रकट करते हैं.