एक दुल्हन दो दूल्हे! हिमाचल में दो भाइयों ने की एक ही लड़की से शादी, सोशल मीडिया पर मचा तहलका

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर ज़िले के ट्रांस-गिरी क्षेत्र में स्थित शिलाई गांव में एक अनूठा विवाह समारोह चर्चा में है. यहां हट्टी जनजाति की पारंपरिक बहुपति विवाह प्रथा के तहत दो सगे भाइयों प्रदीप और कपिल ने एक ही महिला सुनीता चौहान से विवाह रचाया.

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हिमाचल प्रदेश के सिरमौर ज़िले के ट्रांस-गिरी क्षेत्र में स्थित शिलाई गांव में एक अनूठा विवाह समारोह चर्चा में है. यहां हट्टी जनजाति की पारंपरिक बहुपति विवाह प्रथा के तहत दो सगे भाइयों प्रदीप और कपिल ने एक ही महिला सुनीता चौहान से विवाह रचाया. तीन दिन तक चले इस विवाह समारोह में सैकड़ों लोग शामिल हुए और इस परंपरा को खुलेआम निभाते देख खूब चर्चा भी हुई.

इस बहुपति विवाह की रस्में लोक गीतों और पारंपरिक नृत्य के साथ संपन्न हुईं. सोशल मीडिया पर इस अनोखी शादी के वीडियो तेज़ी से वायरल हो रहे हैं, जिससे एक बार फिर 'जोड़िदारा' परंपरा पर देशभर में बहस छिड़ गई है.

किसने किया विवाह और क्यों?

सुनीता चौहान कुंहत गांव की रहने वाली हैं और उन्होंने खुद इस परंपरा को अपनाते हुए बिना किसी दबाव के प्रदीप और कपिल नेगी से शादी की. सुनीता ने कहा, 'मैं इस परंपरा से अच्छी तरह वाकिफ थी और यह निर्णय पूरी समझदारी और आत्मसम्मान के साथ लिया. हमारे बीच जो रिश्ता बना है, मैं उसका सम्मान करती हूं.

प्रदीप सरकारी विभाग में कार्यरत हैं, जबकि कपिल विदेश में नौकरी करते हैं। प्रदीप ने कहा कि हमने इस परंपरा को सार्वजनिक रूप से निभाया क्योंकि हमें इस पर गर्व है और यह हमारा संयुक्त निर्णय था. कपिल ने भी कहा, मैं भले ही विदेश में हूं, लेकिन यह विवाह हमारे रिश्ते में समर्थन, स्थिरता और प्रेम का प्रतीक है. हम हमेशा पारदर्शिता में विश्वास करते हैं.

'जोड़िदारा' परंपरा: राजस्व कानूनों से मान्यता प्राप्त

हिमाचल प्रदेश के राजस्व कानूनों में इस परंपरा को 'जोड़िदारा' के रूप में मान्यता प्राप्त है. ट्रांस-गिरी क्षेत्र के बदहाना गांव में पिछले छह वर्षों में ऐसे पांच विवाह हो चुके हैं. हालांकि आज के समय में ऐसी शादियां कम होती हैं और अधिकतर गुपचुप तरीके से संपन्न होती हैं. हट्टी जनजाति, जिसे तीन साल पहले अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है, हिमाचल-उत्तराखंड की सीमा पर बसी हुई है. करीब 450 गांवों में तीन लाख से अधिक लोग इस जनजाति से ताल्लुक रखते हैं. ट्रांस-गिरी, जौनसार बाबर (उत्तराखंड) और किन्नौर जैसे क्षेत्रों में यह परंपरा पहले सामान्य थी।

क्या है बहुपति विवाह के पीछे की सोच?

कुंदन सिंह शास्त्री, केंद्रीय हट्टी समिति के महासचिव, बताते हैं कि यह परंपरा हजारों साल पहले बनाई गई थी. इसका मुख्य उद्देश्य था कृषि भूमि का विभाजन रोकना, भाईचारा बढ़ाना और कठिन पर्वतीय इलाकों में एकजुटता के साथ खेती और जीवन जीने की व्यवस्था सुनिश्चित करना. बहुपति विवाह से संयुक्त परिवारों में समझदारी और सहयोग बढ़ता है, विशेषकर जब भाइयों की मां अलग-अलग हों। साथ ही, अधिक पुरुष होने से सुरक्षा और खेतों की देखरेख में मदद मिलती है.

'जाजदा' परंपरा: शादी की अनोखी रस्में

हट्टी जनजाति में विवाह को 'जाजदा' कहा जाता है. इस परंपरा में दुल्हन की बारात दूल्हे के गांव आती है। विवाह की मुख्य रस्म 'सींज' दूल्हे के घर पर संपन्न होती है. पंडित स्थानीय भाषा में मंत्रोच्चारण करते हैं, पवित्र जल छिड़कते हैं और अंतिम में गुड़ खिलाकर नवविवाहितों को आशीर्वाद देते हैं कि उनके कुल देवता उनके वैवाहिक जीवन में मिठास भरें.

क्या यह परंपरा आगे भी टिकेगी?

भले ही पढ़ाई-लिखाई और सामाजिक बदलावों के चलते इस परंपरा का चलन कम हुआ है, लेकिन आज भी कुछ गांवों में इसे गर्व और विश्वास के साथ निभाया जा रहा है। इस विवाह ने यह दिखाया कि जब परंपरा, पारदर्शिता और आपसी सहमति के साथ निभाई जाए, तो समाज उसे सम्मान की दृष्टि से देखता है.