भारत के रेलवे नेटवर्क की विशालता और महत्व को भुलाना आसान नहीं है. देश के चौथे सबसे बड़े रेल नेटवर्क के जरिए हर दिन लाखों यात्री देश के कोने-कोने तक सफर करते हैं. विभिन्न प्रकार के डिब्बे जनरल से लेकर वातानुकूलित तक हर बजट और जरूरत के अनुरूप उपलब्ध हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि एक ट्रेन को बनाने में कितना खर्च होता है? इस लेख में हम जानेंगे कि इंजन, डिब्बे और आधुनिक तकनीकों को विकसित करने में कितना निवेश होता है.
ट्रेन का निर्माण एक जटिल और महंगा कार्य है. जहां यात्री केवल कुछ सौ या हजार रुपये में टिकट खरीदते हैं, वहीं एक पूरी ट्रेन को बनाने में अरबों रुपये लगते हैं. एक सामान्य एक्सप्रेस ट्रेन की लागत लगभग 70 करोड़ रुपए तक होती है. इसमें इंजन और डिब्बों दोनों की लागत शामिल होती है. भारतीय रेलवे की रिपोर्ट के अनुसार, एक इंजन की कीमत 15 से 20 करोड़ रुपए के बीच होती है, जो इंजन के प्रकार पर निर्भर करती है डीजल या इलेक्ट्रिक.
भारत में मुख्य रूप से दो प्रकार के ट्रेन इंजन बनाए जाते हैं: डीजल इंजन और इलेक्ट्रिक इंजन. वर्तमान में लगभग 52% ट्रेनें डीजल इंजन पर चलती हैं, लेकिन रेलवे तेजी से विद्युतीकरण की दिशा में बढ़ रहा है. एक 4500 हॉर्सपावर वाला डीजल इंजन लगभग 13 करोड़ रुपए में बनता है, जबकि डुएल मोड इंजन (जो डीजल और इलेक्ट्रिक दोनों पर चल सकता है) की कीमत लगभग 18 करोड़ रुपए होती है. इलेक्ट्रिक इंजन की कीमत लगभग 20 करोड़ रुपए के आसपास होती है, जो तकनीकी उन्नति के कारण अधिक महंगा होता है.
एक औसत एक्सप्रेस ट्रेन में लगभग 24 डिब्बे होते हैं. हर डिब्बे के निर्माण की लागत लगभग 2 करोड़ रुपए होती है, जिससे कुल डिब्बों की लागत लगभग 50 करोड़ रुपए तक पहुंच जाती है. इंजन की लागत मिलाकर पूरी ट्रेन की कीमत लगभग 70 करोड़ रुपए हो जाती है. डिब्बों में भी विभिन्न प्रकार होते हैं - स्लीपर डिब्बे, जनरल डिब्बे, और वातानुकूलित डिब्बे. एसी कोच, जिनमें एडवांस्ड इंसुलेशन और विद्युत प्रणाली होती है, सबसे महंगे होते हैं. इसके अलावा अतिरिक्त सुविधाओं वाले डिब्बे, जैसे स्लीपर क्लास, भी महंगे होते हैं.
भारतीय रेलवे का एक बड़ा हिस्सा घरेलू उत्पादन पर निर्भर करता है. चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स, डीजल लोकोमोटिव वर्क्स और इंटीग्रल कोच फैक्ट्री जैसी संस्थाएं भारत में ही ट्रेनों और इंजन के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. इससे न केवल लागत नियंत्रण में मदद मिलती है, बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे राष्ट्रीय लक्ष्य भी साकार होते हैं. यह भारतीय रेलवे को तकनीकी रूप से मजबूत और आर्थिक रूप से टिकाऊ बनाता है.