बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर ‘टोपी विवाद’ को लेकर चर्चा में हैं। हाल ही में बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड के शताब्दी समारोह में उन्हें पारंपरिक मुस्लिम टोपी भेंट की गई। लेकिन नीतीश कुमार ने खुद टोपी पहनने के बजाय उसे अपने मंत्री और सहयोगी मोहम्मद जमा खान के सिर पर पहना दिया। इस पूरे घटनाक्रम पर राजनीतिक बयानबाज़ी शुरू हो गई है।
दरअसल, यह मामला इसलिए अहम है क्योंकि करीब बारह साल पहले नीतीश कुमार का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे टोपी पहनने से इनकार कर रहे थे। उस समय उन्होंने कहा था कि एक नेता को देश चलाने के लिए "टोपी और तिलक दोनों पहनना ज़रूरी है"। यह सीधा तंज नरेंद्र मोदी पर माना गया था, जिन्होंने 2011 में एक मुस्लिम धर्मगुरु से मिली टोपी पहनने से इनकार किया था। उस दौर में नीतीश कुमार मोदी के खिलाफ थे और उन्होंने भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया था। लेकिन आज हालात पूरी तरह बदल चुके हैं—अब वही नीतीश कुमार मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के सहयोगी हैं और बिहार चुनाव की तैयारी कर रहे हैं।
मदरसा बोर्ड के कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने दावा किया कि उनकी सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए कई काम किए हैं। उन्होंने कहा कि 2005 से पहले मुस्लिम समाज की भलाई के लिए कुछ खास नहीं हुआ था। उनकी सरकार ने मदरसा शिक्षकों को सरकारी स्कूल शिक्षकों के बराबर वेतन दिलवाया और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए भी काम किया।
हालाँकि कार्यक्रम में सबकुछ शांत नहीं रहा। कई शिक्षक अपने बकाया वेतन को लेकर विरोध करने लगे और नारेबाज़ी हुई। नीतीश कुमार ने उनकी शिकायतें सुनीं और ज्ञापन भी लिया, लेकिन विरोध करने वालों ने कहा कि मुख्यमंत्री सिर्फ पुरानी उपलब्धियों की बात कर रहे थे, जबकि उन्हें आज की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए था।
जेडीयू की ओर से नीतीश कुमार का बचाव किया गया। पार्टी नेता खालिद अनवर ने कहा कि मुख्यमंत्री ने जमा खान के सिर पर टोपी पहनाकर अल्पसंख्यकों का सम्मान बढ़ाया है। उन्होंने आरोप लगाया कि राजद इस मुद्दे पर अनावश्यक राजनीति कर रही है और सांप्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश कर रही है।
यह पूरा मामला दिखाता है कि बिहार की राजनीति में ‘टोपी’ अब भी एक संवेदनशील और बड़ा चुनावी मुद्दा है, जिसे विपक्ष और सत्ताधारी दल अपने-अपने तरीके से भुनाने की कोशिश कर रहे हैं।