भारत के टेक्नोलॉजी क्षेत्र के लिए सबसे बड़ा प्रतिनिधि संगठन नैसकॉम (NASSCOM) इस समय अमेरिकी प्रशासन द्वारा एच-1बी वीजा पर सालाना 1 लाख डॉलर फीस लगाने के फैसले का प्रभाव समझने में जुटा है. यह फैसला भारतीय आईटी उद्योग के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है, क्योंकि अमेरिका में काम करने वाले उच्च-कौशल वाले टेक कर्मचारियों का सबसे बड़ा हिस्सा भारतीय ही हैं.
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, भारत इस मुद्दे को लेकर वाशिंगटन डीसी में भारतीय दूतावास के साथ लगातार संपर्क में है. साथ ही, टेक इंडस्ट्री से जुड़े संगठनों, खासकर नैसकॉम, से चर्चा की जा रही है ताकि इस निर्णय के असर और संभावित विकल्पों पर रणनीति बनाई जा सके. विशेषज्ञों का कहना है कि नई फीस का बोझ अमेरिकी कंपनियों पर सबसे ज्यादा पड़ेगा, क्योंकि उनकी डिपेंडेंसी भारतीय पेशेवरों पर ज्यादा है.
विशेषज्ञ मानते हैं कि वीजा फीस में इस बदलाव से भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) की एक नई लहर देखने को मिल सकती है. भारत पहले से ही इस क्षेत्र का बड़ा हब है. यहां मौजूद 48% GCC अगले कुछ वर्षों में अपनी वर्कफोर्स को और बढ़ाने की योजना बना रहे हैं. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में कहा था कि दुनिया के लगभग आधे GCC भारत में हैं, और ये इनोवेशन, रिसर्च और रोजगार सृजन में अहम भूमिका निभा रहे हैं.
2021 से अमेरिका की कंपनियां भारत में बने कुल GCCs का लगभग 70% हिस्सा रही हैं. हालांकि, हाल के समय में यूके, यूरोप और एशिया-प्रशांत क्षेत्र के कई GCC भी भारत में तेजी से अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं. इस समय भारत में लगभग 1,700 GCC मौजूद हैं, और 2030 तक इनकी संख्या बढ़कर 2,100 से ज्यादा हो सकती है.
आईटी इंडस्ट्री के दिग्गज सी. पी. गुरनानी (पूर्व सीईओ, टेक महिंद्रा) का मानना है कि भारतीय आईटी कंपनियों ने पिछले कुछ वर्षों में H-1B वीजा पर निर्भरता काफी हद तक कम कर दी है. वीजा आवेदन में भी 50% से अधिक कमी देखी गई है. कंपनियां अब स्थानीय स्तर पर ज्यादा भर्ती कर रही हैं, ऑटोमेशन को बढ़ावा दे रही हैं और ग्लोबल डिलीवरी मॉडल को मजबूत बना रही हैं. इस वजह से, भले ही वीजा फीस बढ़ाई गई है, इसका असर भारतीय आईटी उद्योग पर सीमित ही रहेगा.