दिवाली के त्योहार से पहले ही दिल्ली-एनसीआर की हवा ने फिर से खतरे की घंटी बजा दी है.राजधानी में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है.केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक, शुक्रवार सुबह अक्षरधाम इलाके में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 230 दर्ज किया गया. जो ‘खराब’ श्रेणी में आता है.वहीं, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम और बरापुला ब्रिज क्षेत्र में AQI 252 तक पहुंच गया है.
राजधानी के साथ-साथ एनसीआर के अन्य शहरों की हवा भी दमघोंटू होती जा रही है.गाज़ियाबाद ने शुक्रवार को देश का सबसे प्रदूषित शहर बनने का रिकॉर्ड बनाया, जहां AQI 306 दर्ज हुआ — यानी ‘बेहद खराब’ श्रेणी में.नोएडा (278) और गुरुग्राम (266) की हवा भी ‘खराब’ श्रेणी में रही, जबकि फरीदाबाद (105) में स्थिति ‘मध्यम’ पाई गई।
दिल्ली के 38 मॉनिटरिंग स्टेशनों में से पांच ने ‘बेहद खराब’ श्रेणी की वायु गुणवत्ता दर्ज की.इनमें आनंद विहार का AQI सबसे अधिक 382 रहा.इसके अलावा वज़ीरपुर (351), जहांगीरपुरी (342), बवाना (315) और सिरी फोर्ट (309) भी गंभीर श्रेणी में शामिल रहे.CPCB के मुताबिक, दिल्ली की वायु गुणवत्ता 14 अक्टूबर से लगातार गिर रही है, और हर दिन हालात और बिगड़ते जा रहे हैं।
CPCB के मानकों के अनुसार, AQI 201 से 300 के बीच हो तो हवा ‘खराब’ मानी जाती है. जबकि 301 से 400 के बीच AQI होने पर हवा ‘बेहद खराब’ श्रेणी में आती है. प्राधिकरणों ने लोगों को चेतावनी दी है कि वे बाहर निकलने से बचें, खासकर सुबह और शाम के समय जब प्रदूषण का असर ज्यादा होता है।
मौसम विभाग के अनुसार, शुक्रवार को दिल्ली का न्यूनतम तापमान 18.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो सामान्य से 1.2 डिग्री कम है.सुबह 8:30 बजे सापेक्ष आर्द्रता 74 प्रतिशत दर्ज की गई.विशेषज्ञों के अनुसार, तापमान में गिरावट के साथ प्रदूषण की परत और घनी हो जाती है, जिससे हवा की गति धीमी पड़ती है.
फेफड़ों के विशेषज्ञ डॉ. अनुराग अग्रवाल ने चेतावनी दी है कि प्रदूषण का असर सिर्फ अस्थायी दिक्कतों जैसे सांस फूलना या आंखों में जलन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शरीर के अंदर खामोश नुकसान पहुंचा रहा है.लगभग हर व्यक्ति चाहे उसे अस्थमा हो या नहीं इस स्तर के प्रदूषण में ब्लड प्रेशर में बढ़ोतरी महसूस करेगा. डॉ. अग्रवाल ने कहा कि 'जिन लोगों को पहले से हाई ब्लड प्रेशर या हार्ट फेल्योर है, उनके लिए यह स्थिति और खतरनाक हो सकती है.
उन्होंने यह भी बताया कि लंबे समय तक ऐसे वातावरण में रहना फेफड़ों के साथ-साथ दिल और दिमाग पर भी बुरा असर डालता है. फेफड़ों के लिहाज़ से सबसे संवेदनशील लोग वे हैं जिन्हें अस्थमा या क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) जैसी पुरानी बीमारियाँ हैं, जो घुटन, सांस में रुकावट और सीने में जकड़न पैदा करती हैं. निष्कर्ष
Copyright © 2025 The Samachaar
