छठ पूजा का पवित्र पर्व शुरू हो चुका है और इसका दूसरा दिन यानी खरना सबसे अहम माना जाता है. इस दिन व्रती महिलाएं पूरे दिन बिना कुछ खाए-पिए उपवास रखती हैं और शाम को पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोलती हैं.
‘खरना’ शब्द का अर्थ है शुद्धता और पवित्रता. पूरा छठ पर्व ही स्वच्छता और सच्ची निष्ठा का प्रतीक माना जाता है. इस दिन व्रत करने वाली महिलाओं को अपने शरीर, मन और वातावरण की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना होता है ताकि व्रत में कोई बाधा न आए.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, खरना कार्तिक मास की पंचमी तिथि को मनाया जाता है, जो ‘नहाय-खाय’ के अगले दिन होता है. इस दिन व्रती महिलाएं गुड़ की खीर, रोटी और केला का प्रसाद बनाती हैं और सूर्यदेव व छठी मैया को अर्पित करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण करती हैं. इसके बाद वे 36 घंटे तक का निर्जला व्रत (बिना जल-अन्न के उपवास) रखती हैं.
खरना का दिन आस्था, भक्ति और समर्पण का प्रतीक होता है. यह व्रत छठी मैया और सूर्य भगवान की कृपा पाने के लिए किया जाता है. मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से यह व्रत करते हैं, उनके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है.
इस दिन व्रती महिलाएं अपने तन-मन की पवित्रता बनाए रखने के लिए कठोर नियमों का पालन करती हैं. दिनभर उपवास रखती हैं और न सूर्यास्त से पहले जल ग्रहण करती हैं, न भोजन. यह आत्मसंयम और भक्ति का अद्भुत उदाहरण माना जाता है.
खरना के दिन गुड़ की खीर विशेष रूप से बनाई जाती है. परंपरा है कि इसे नए चूल्हे पर मिट्टी के बर्तन में बनाया जाता है. पहले यह प्रसाद सूर्यदेव और छठी मैया को अर्पित किया जाता है, फिर परिवार और आस-पड़ोस में बांटा जाता है. माना जाता है कि इससे स्वास्थ्य, समृद्धि और परिवार के कल्याण का आशीर्वाद मिलता है.
छठ पूजा का खरना सिर्फ एक धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि आत्मसंयम, स्वच्छता और भक्ति का प्रतीक है. यह दिन हमें यह सिखाता है कि श्रद्धा और अनुशासन से किया गया हर कार्य हमें मन की शांति और ईश्वरीय आशीर्वाद दिलाता है.
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