Kingdom Movie Review: तेलुगु फिल्म ‘किंगडम’ विजय देवरकोंडा की एक और दमदार पेशकश है, जिसमें सिर्फ एक्शन नहीं, बल्कि भावनाओं की गहराई भी देखने को मिलती है। इस फिल्म को गौतम तिन्नानुरी ने निर्देशित किया है, जो पहले भी जर्सी और मल्ली रावा जैसी संवेदनशील फिल्मों के लिए जाने जाते हैं।
फिल्म की शुरुआत 1920 के दशक में श्रीकाकुलम के तट पर बसे एक द्वीप से होती है, जहां एक आदिवासी योद्धा अपने लोगों के अस्तित्व की लड़ाई लड़ता है। यह हिस्सा सिनेमाई रूप से बहुत सुंदर है और दर्शकों को फिल्म की दुनिया में खींच लेता है। समय आगे बढ़ता है और अब कहानी सूरी (विजय देवरकोंडा) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक पुलिस कांस्टेबल है और एक खास मिशन पर श्रीलंका भेजा जाता है।
मिशन के दौरान सूरी की मुलाकात अपने खोए हुए भाई शिवा (सत्यदेव) से होती है। यहां से कहानी भावनात्मक मोड़ लेती है और पारिवारिक रिश्ते, जनजातीय संघर्ष और अपराध की दुनिया आपस में जुड़ जाते हैं।
फिल्म का पहला हिस्सा बेहद आकर्षक और संतुलित है जहां कहानी, अभिनय, लोकेशन और म्यूजिक सभी अपने चरम पर हैं। लेकिन दूसरे भाग में फिल्म थोड़ी खिंचती हुई लगती है। जब एक्शन और खून-खराबा हावी हो जाता है, तब कहानी की गहराई थोड़ी कम हो जाती है। क्लाइमैक्स जल्दीबाज़ी में खत्म किया गया लगता है और वॉयसओवर पर ज्यादा निर्भर करता है।
विजय देवरकोंडा इस बार बहुत कम बोलते हैं लेकिन उनका चेहरा और आंखें बहुत कुछ कह जाती हैं। जंगल में एक एक्शन सीन खासतौर पर शानदार है। सत्यदेव का किरदार भी मजबूत है और सिर्फ हीरो को ऊँचा दिखाने के लिए नहीं लिखा गया है।
फिल्म में कॉस्ट्यूम, बैकग्राउंड म्यूजिक और कैमरा वर्क सब मिलकर फिल्म को विजुअली बहुत ही खास बनाते हैं। विलेन के किरदार में वेंकितेश छा जाते हैं, वहीं भव्यश्री बोरसे और बाकी सह कलाकार भी अपने-अपने रोल में दमदार हैं।
किंगडम सिर्फ एक एक्शन फिल्म नहीं, बल्कि इसमें दिल छू लेने वाली कहानी, भाईचारे की भावना और सामाजिक संदेश भी है। थोड़ी कमज़ोरियों के बावजूद यह फिल्म दर्शकों को बांधकर रखती है और विजय देवरकोंडा के फैंस के लिए एक खास तोहफा साबित होती है।
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