दिल्ली में 11 मिनी सचिवालय की तैयारी, अब एक ही जगह मिलेंगी सभी सरकारी सेवाएं

दिल्ली सरकार राजधानी में 11 मिनी सचिवालय बनाने की योजना पर तेजी से काम कर रही है। पहले चरण में पूर्वी दिल्ली (पटपड़गंज), दक्षिण-पश्चिम (द्वारका) और नई दिल्ली (न्यू मोती बाग) में सचिवालय स्थापित होंगे।

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दिल्ली सरकार राजधानी के लोगों की समस्याओं को जल्दी और आसान तरीके से हल करने के लिए 11 मिनी सचिवालय बनाने की योजना पर तेजी से काम कर रही है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के निर्देश पर इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया जा रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि नागरिकों को अलग-अलग विभागों के चक्कर न लगाने पड़ें और सारी सुविधाएं उन्हें एक ही जगह पर मिल सकें।

पहले फेज में तीन मिनी सचिवालय

सरकार की योजना है कि पहले चरण में तीन मिनी सचिवालय बनाए जाएं।

पूर्वी दिल्ली में पटपड़गंज

दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में द्वारका

नई दिल्ली में न्यू मोती बाग

इन जगहों पर मिनी सचिवालय की बिल्डिंग के प्रस्ताव रखे गए हैं। फिलहाल ये प्रस्ताव विचाराधीन हैं और अंतिम निर्णय जल्द लिया जाएगा।

एक ही छत के नीचे मिलेंगी कई सेवाएं

इन मिनी सचिवालयों में दिल्ली के कई अहम विभाग होंगे, जैसे:

दिल्ली नगर निगम (MCD)

दिल्ली जल बोर्ड (DJB)

दिल्ली राज्य औद्योगिक एवं अवसंरचना विकास निगम (DSIIDC)

सिंचाई विभाग

राजस्व विभाग

सामाजिक कल्याण विभाग

इन सभी विभागों के एक साथ आने से लोगों को बार-बार अलग-अलग दफ्तरों में जाने की जरूरत नहीं होगी।

सचिवालय से जुड़े काम होंगे शिफ्ट

आईटीओ स्थित दिल्ली सचिवालय और सिविल लाइंस व कश्मीरी गेट स्थित कई कार्यालयों में चल रहे कुछ कार्यों को मिनी सचिवालयों में ट्रांसफर किया जाएगा। इससे मुख्य सचिवालय पर दबाव भी कम होगा और नागरिकों को सुविधा भी मिलेगी।

लोगों को होगा बड़ा फायदा

अक्सर लोग अलग-अलग जगहों पर स्थित विभागों के चक्कर काटते हैं, जिससे समय और पैसा दोनों बर्बाद होते हैं। अब मिनी सचिवालयों में सभी सेवाएं एक ही जगह उपलब्ध होंगी। इससे न केवल काम जल्दी होगा बल्कि विभागों के बीच तालमेल भी बेहतर होगा।

अन्य जिलों में भी तैयारी

दिल्ली सरकार का लक्ष्य है कि सभी 11 जिलों में मिनी सचिवालय बनाए जाएं। जिलाधिकारियों को इसके लिए उपयुक्त स्थान ढूंढने का निर्देश पहले ही दिया जा चुका है। हालांकि, उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पूर्व जिलों जैसे घनी आबादी वाले इलाकों में जमीन की कमी सबसे बड़ी चुनौती है। इसके बावजूद विकल्प तलाशे जा रहे हैं।