साल 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में 180 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी और सैकड़ों लोग घायल हुए थे। इस मामले में 2015 में 12 लोगों को दोषी ठहराया गया था—5 को फांसी और 7 को उम्रकैद की सजा मिली थी। लेकिन अब, 19 साल बाद, बॉम्बे हाईकोर्ट ने सबको बेकसूर करार देते हुए बरी कर दिया है।
कोर्ट ने क्यों बरी किया?
हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष (सरकार की ओर से केस लड़ने वाले वकील) आरोपियों के खिलाफ ठोस सबूत नहीं दे सका।
सबूत भरोसेमंद नहीं थे –
पुलिस ने जो बम, तार और सामान बरामद किए, उनकी देखरेख और रिकॉर्डिंग में लापरवाही हुई। अदालत ने कहा कि उनसे यह साबित नहीं होता कि आरोपियों का इस अपराध से सीधा कोई लेना-देना था।
गवाहों के बयान कमजोर थे –
टैक्सी ड्राइवर और दूसरे लोग, जिन्होंने आरोपियों को बम बनाते या ले जाते देखने का दावा किया था, उनके बयान विरोधाभासी थे और कोर्ट ने उन्हें भरोसे के लायक नहीं माना।
पहचान परेड में गड़बड़ी –
जिन पुलिस अधिकारियों ने पहचान परेड करवाई थी, वे इसके लिए अधिकृत नहीं थे। साथ ही, गवाहों ने आरोपियों को धमाकों के कई महीने बाद पहचानने की कोशिश की, जो कोर्ट को गलत लगी।
इकबालिया बयान भी कमजोर साबित हुए –
कुछ आरोपियों ने जो जुर्म कबूल किया था, वो भी अदालत को अधूरा और एक-दूसरे की नकल जैसा लगा। आरोपियों ने बताया कि उनसे यह बयान जबरन और मारपीट करवा कर लिए गए थे।
क्या कहा कोर्ट ने?
जजों ने साफ कहा कि "अभियोजन पक्ष आरोपियों का अपराध साबित करने में पूरी तरह नाकाम रहा। उनके खिलाफ मौजूद सबूत नाकाफी और अविश्वसनीय हैं।"
अब आगे क्या?
कोर्ट ने आदेश दिया कि जिन लोगों को दोषी ठहराया गया था, उन्हें रिहा किया जाए (अगर वे किसी और केस में वांछित नहीं हैं)।
2015 में क्या हुआ था?
एक स्पेशल अदालत ने 12 लोगों को दोषी माना था।
5 को फांसी की सजा मिली थी
7 को उम्रकैद की सजा मिली थी
अब सभी को बरी कर दिया गया है।
नतीजा
इस केस में महाराष्ट्र की एटीएस (आतंकवाद रोधी दस्ते) की जांच पर अब सवाल उठ रहे हैं। हाईकोर्ट के फैसले से यह साफ हो गया कि इतने गंभीर मामले की जांच में कई बड़ी लापरवाहियां हुईं, जिसकी वजह से असली दोषी अब तक सामने नहीं आए।