हर साल जून का महीना दुनिया भर में इंद्रधनुषी रंगों से सज जाता है, लेकिन इसके पीछे सिर्फ उत्सव नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन की विरासत है. LGBTQIA+ कम्युनिटी के लिए ये महीना सिर्फ सेलिब्रेशन नहीं, बल्कि अपनी पहचान, अधिकार और आत्मसम्मान के स्ट्रगल को सलाम करने का समय है.
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि प्राइड मंथ जून में ही क्यों मनाया जाता है? इसके पीछे छिपी है एक ऐतिहासिक घटना, जिसने दुनिया भर में समानता की लड़ाई को एक नई दिशा दी.
LGBTQIA+ समुदाय को उस दौर में केवल सामाजिक भेदभाव ही नहीं, बल्कि पुलिस की दमनकारी कार्रवाइयों का भी सामना करना पड़ता था. न्यूयॉर्क का “स्टोनवॉल इन” बार अक्सर पुलिस रेड का शिकार होता था, लेकिन एक रात सबकुछ बदल गया.
जब पुलिस ने वहां फिर से छापा मारा, तो इस बार लोगों ने चुपचाप गिरफ्तारी नहीं दी. ट्रांसजेंडर, ड्रैग क्वीन्स और क्वीर समुदाय के अन्य सदस्यों ने मिलकर पहली बार खुलकर विरोध किया. कई दिनों तक चले इस आंदोलन को “स्टोनवॉल विद्रोह” के नाम से जाना गया और यहीं से शुरू हुई एक वैश्विक क्रांति.
पहली परेड से लेकर आज के उत्सव तक का सफर
28 जून 1970 को स्टोनवॉल विद्रोह की पहली सालगिरह पर न्यूयॉर्क की सड़कों पर LGBTQIA+ समुदाय ने “क्रिस्टोफर स्ट्रीट लिबरेशन डे मार्च” निकाला. ये इतिहास की पहली प्राइड परेड मानी जाती है.
इसके बाद लॉस एंजेलेस, शिकागो और अन्य शहरों में भी इसी तरह की परेड्स का आयोजन हुआ. धीरे-धीरे जून का महीना “प्राइड मंथ” के रूप में पहचान बनाने लगा.
1978 में कलाकार गिल्बर्ट बेकर ने एक झंडा डिजाइन किया जो आज प्राइड का ग्लोबल सिंबल है — रेनबो फ्लैग.
लाल – जीवन नारंगी – उपचार हरा – प्रकृति नीला – शांति बैंगनी – आत्मा
आज भले ही प्राइड इवेंट्स में नाच, गाना और फैशन दिखता हो, लेकिन इसकी जड़ें समानता के संघर्ष में हैं.ये वो वक्त है जब LGBTQIA+ लोग अपने अनुभव साझा करते हैं, अपनी आवाज बुलंद करते हैं और समाज से स्वीकृति की मांग करते हैं.
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