Premanand ji maharaj : आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में रिश्तों का मान और उनके प्रति कर्तव्य कहीं धुंधला सा होता जा रहा है. माडर्न लाइफस्टाइल और आत्मकेंद्रित सोच ने हमें रिश्तों को बोझ समझना सिखा दिया है. खासकर जब बात सास-ससुर जैसे रिश्तों की हो, तो युवा पीढ़ी उन्हें महज "रिवायती जिम्मेदारी" मानकर छोड़ देती है. ऐसे में वृंदावन के आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद महाराज ने एक बहुत ही जरूरी और गहरी बात कही है- जो सास-ससुर की सेवा नहीं करता, वह जीवन में कई तरह के संकट खुद बुलाता है.
प्रेमानंद महाराज बताते हैं कि सास-ससुर माता-पिता के समान होते हैं. उन्हें सम्मान देना, उनकी सेवा करना कोई विकल्प नहीं बल्कि जीवन का कर्तव्य है. ये भावनात्मक संतुलन और पारिवारिक सुख-शांति की नींव है.
अगर कोई अपने सास-ससुर की सेवा नहीं करता, तो पितृदोष उत्पन्न हो सकता है. इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को आर्थिक तंगी, स्वास्थ्य समस्याएं, पारिवारिक कलह जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
गुरुजी बताते हैं कि जो लोग बुज़ुर्गों का अनादर करते हैं, उनकी आत्मा मृत्यु के बाद शांति नहीं पाती. वे भूत-प्रेत या अन्य पीड़ादायक योनि में भटकते हैं.
सेवा का अभाव अगले जन्म में भी पीछा नहीं छोड़ता. ऐसे लोग अगले जन्म में दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं और उन्हें कभी आत्मसंतोष नहीं मिलता.
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, ये दंड सिर्फ अगले जन्म का नहीं होता. इस जीवन में भी शराब की लत, रिश्तों की टूटन, नौकरी की अस्थिरता जैसी समस्याएं ऐसे ही कर्मों का नतीजा हो सकती हैं.
एक बहू को सास-ससुर को मां-बाप की तरह समझते हुए उनका ख्याल रखना चाहिए. वहीं, एक दामाद को भी पत्नी के माता-पिता के प्रति जिम्मेदारी समझनी चाहिए. सेवा, सम्मान और सहानुभूति- यही परिवार का असली आधार हैं.
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