उत्तर प्रदेश में गर्भपात से जुड़े नियमों को और सख्त कर दिया गया है। राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने यौन हिंसा, बलात्कार और अन्य विशेष परिस्थितियों में गर्भपात को लेकर नई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की है। यह कदम इलाहाबाद हाईकोर्ट में "एक्स बनाम उत्तर प्रदेश राज्य" मामले में दिए गए आदेश के बाद उठाया गया है।
इन नए दिशा-निर्देशों में भारत सरकार के "गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 (एमटीपी एक्ट)" और "गर्भ का चिकित्सीय समापन नियम-2003" को शामिल किया गया है। अब केवल वही अस्पताल और क्लीनिक गर्भपात कर पाएंगे जो सरकार के साथ पंजीकृत हों और एमटीपी एक्ट के तहत अधिकृत हों।
स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने बताया कि राज्य में सरकारी और निजी दोनों तरह के पंजीकृत अस्पतालों में ही गर्भपात की अनुमति होगी। किसी भी डॉक्टर या संस्थान ने यदि बिना पंजीकरण के गर्भपात किया, तो उसे दो से सात साल तक की सजा हो सकती है। इतना ही नहीं, जिस स्थान पर अवैध गर्भपात होगा उसके मालिक पर भी यही सजा लागू होगी।
एसओपी में यह भी बताया गया है कि कौन-सी महिलाएं गर्भपात कराने की पात्र होंगी। एमटीपी एक्ट के अनुसार, यदि कोई महिला बलात्कार की शिकार है, बहुत कम उम्र में गर्भवती है, पति की मृत्यु या तलाक जैसी स्थिति में है, मानसिक या शारीरिक रूप से दिव्यांग है, या बच्चे में गंभीर अनुवांशिक बीमारी की आशंका है—तो ऐसी महिलाएं 24 सप्ताह तक का गर्भपात करा सकती हैं।
यदि गर्भ 24 सप्ताह से अधिक हो जाता है, तो केवल मेडिकल बोर्ड की अनुमति से ही गर्भपात संभव होगा। यह बोर्ड केजीएमयू, एसजीपीजीआई और लोहिया संस्थान के वरिष्ठ डॉक्टरों से मिलकर बनेगा। इसमें स्त्री एवं प्रसूति रोग, बाल रोग, रेडियोलॉजी, कार्डियोलॉजी, न्यूरोलॉजी और जेनेटिक्स विभागों के विशेषज्ञ शामिल होंगे।
महिला की निजता को सुरक्षित रखना इन नियमों का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। जिला स्तर पर भी समितियां बनाई जाएंगी जिनमें सीएमओ, स्त्री रोग विशेषज्ञ, एनेस्थेटिस्ट, सर्जन, स्थानीय चिकित्सक और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। ये समितियां दो साल तक सक्रिय रहेंगी और गर्भपात से जुड़े मामलों की निगरानी करेंगी।
इस तरह नए नियमों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गर्भपात सुरक्षित, कानूनी और नियंत्रित तरीके से हो, ताकि महिलाओं की जान और सेहत सुरक्षित रह सके।
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