पंजाब सरकार जहां 2 अक्टूबर से हर परिवार को ₹10 लाख का कैशलेस इलाज देने की योजना शुरू करने जा रही है, वहीं एक ताजा रिपोर्ट ने राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की असलियत उजागर कर दी है. केंद्र सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, पंजाब के लोग इलाज के लिए अपनी जेब से राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा खर्च कर रहे हैं.
यह खुलासा ऐसे वक्त में हुआ है जब आम आदमी पार्टी की सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर बड़े-बड़े दावे कर रही है। रिपोर्ट बताती है कि राज्य के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लोगों की जेबें इलाज के खर्च से हल्की हो रही हैं, जो स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर की असली तस्वीर बयान करती है.
केंद्र सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब के ग्रामीण परिवार हर साल औसतन ₹7,374 इलाज पर खर्च कर रहे हैं. यह आंकड़ा राष्ट्रीय औसत ₹4,129 से लगभग 78% ज्यादा है. इसका मतलब है कि पंजाब के गांवों में इलाज अब गरीब की पहुंच से बाहर होता जा रहा है.
शहरों में रहने वाले पंजाबी परिवारों को भी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए औसतन ₹6,963 हर साल चुकाने पड़ रहे हैं. इसका बड़ा कारण है – निजी अस्पतालों की महंगाई और बीमा पॉलिसियों में कई बार इलाज का कवर न होना.
स्वास्थ्य बीमा की कमी: गांवों में अभी भी बड़ी संख्या में लोग स्वास्थ्य बीमा से वंचित हैं.
सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली: लोग इलाज के लिए शहरों का रुख करते हैं, जिससे यात्रा और रहन-सहन पर अतिरिक्त खर्च आता है।
महंगे निजी अस्पताल: सरकारी व्यवस्था की सीमाओं के चलते आम लोग प्राइवेट अस्पतालों पर निर्भर हैं, जहां इलाज की कीमतें आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं.
बीमा पॉलिसियों की सीमाएं: कई जरूरी इलाज और मेडिकल प्रक्रियाएं बीमा में कवर नहीं होतीं, जिससे मरीजों को अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है.
इलाज पर सबसे ज्यादा खर्च करने वाले राज्यों की सूची में केरल पहले, हरियाणा दूसरे और पंजाब तीसरे स्थान पर है. हालांकि मुख्यमंत्री भगवंत मान ने 2 अक्टूबर से हर परिवार को ₹10 लाख तक का कैशलेस इलाज देने की घोषणा की है, लेकिन मौजूदा रिपोर्ट बताती है कि जमीनी हकीकत अभी भी बहुत कड़वी है. अगर सरकार इस आंकड़े को सच में पलटना चाहती है, तो उसे केवल घोषणाएं नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं की ठोस व्यवस्था करनी होगी.
Copyright © 2025 The Samachaar
