राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे करने जा रहा है, और इस अवसर पर बेंगलुरु में आयोजित दो दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने संगठन के विजन और मिशन को लेकर कई अहम बातें कहीं. उन्होंने कहा कि आरएसएस का उद्देश्य संपूर्ण हिंदू समाज को एकजुट और संगठित करना है, ताकि एक समृद्ध, सशक्त और शांतिपूर्ण भारत का निर्माण किया जा सके.
मोहन भागवत ने कहा कि संघ का विजन सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे विश्व के कल्याण से जुड़ा है. उन्होंने कहा — “हम ऐसा हिंदू समाज बनाना चाहते हैं जो दुनिया को धर्म, सत्य और शांति का ज्ञान दे सके. दुनिया को अगर सुख और आनंद चाहिए, तो यह काम केवल हिंदू समाज कर सकता है. इसके लिए हम समाज को तैयार कर रहे हैं.”
भागवत ने स्पष्ट किया कि आरएसएस का उद्देश्य किसी राजनीतिक या आर्थिक लाभ से नहीं जुड़ा, बल्कि एक संघटित और जागरूक समाज बनाना है जो सभी के कल्याण के लिए कार्य करे.
संघ प्रमुख ने अपने भाषण में कहा कि आरएसएस का मुख्य लक्ष्य एकजुट समाज का निर्माण है. उन्होंने कहा, “हमारा काम है पूरे हिंदू समाज को संगठित करना. जब समाज संगठित होगा, तो बाकी सभी कार्य अपने आप पूरे होंगे. हमारा मिशन और दृष्टि केवल एक है — एक मजबूत और संगठित हिंदू समाज का निर्माण.” भागवत ने आगे कहा कि यह समाज किसी व्यक्ति या संगठन का नहीं होगा, बल्कि पूरे राष्ट्र और मानवता के कल्याण के लिए कार्य करेगा.
मोहन भागवत ने उन सवालों का भी जवाब दिया जो संघ के पंजीकरण को लेकर उठाए जा रहे थे. उन्होंने कहा, “बहुत-सी चीजें पंजीकृत नहीं हैं. यहां तक कि हिंदू धर्म भी किसी जगह पंजीकृत नहीं है. क्या हम हिंदू धर्म को रजिस्टर करा सकते हैं? नहीं. तो फिर संघ के लिए यह सवाल क्यों?”उन्होंने आगे कहा कि आरएसएस एक संगठन नहीं बल्कि विचार है, जो लोगों के मन में बसता है.
आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई थी, उस वक्त भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था. इस पर भागवत ने तंज कसते हुए कहा, “क्या हमें ब्रिटिश सरकार के पास जाकर पंजीकरण कराना चाहिए था? उस वक्त तो आजादी भी नहीं मिली थी. सरकार ने कभी यह अनिवार्य नहीं किया कि कोई संगठन तभी काम करेगा जब वह पंजीकृत हो.”
उन्होंने यह भी बताया कि आरएसएस पर तीन बार प्रतिबंध लगाया जा चुका है, जो यह साबित करता है कि सरकार स्वयं संघ को एक सक्रिय संगठन के रूप में मान्यता देती है. उन्होंने कहा, “अगर हम अस्तित्व में नहीं थे, तो फिर प्रतिबंध किस पर लगाया गया?”
भागवत ने अपने संबोधन के अंत में कहा कि संघ का एक ही उद्देश्य है — एक संगठित हिंदू समाज के माध्यम से एक मजबूत और समृद्ध भारत का निर्माण करना. उन्होंने कहा कि आरएसएस का विजन “एकल” है, और उसे पूरा करने के बाद हमें कुछ और नहीं चाहिए.
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