लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने मंगलवार को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ नकदी विवाद की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाने का ऐलान किया। यह मामला उस घटना से जुड़ा है, जब इस साल 14 मार्च को दिल्ली में उनके सरकारी आवास पर आग बुझाने के दौरान बड़ी मात्रा में जली हुई और आंशिक रूप से जली हुई नकदी बरामद हुई थी। उस समय न्यायमूर्ति वर्मा दिल्ली उच्च न्यायालय में कार्यरत थे।
नई गठित जांच समिति में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मनिंदर मोहन, और वरिष्ठ अधिवक्ता बी.वी. आचार्य शामिल हैं। यह पैनल आरोपों की गहराई से जांच करेगा।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते न्यायमूर्ति वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त आंतरिक जांच पैनल की रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की थी। उस रिपोर्ट में उन्हें कदाचार (Misconduct) का दोषी पाया गया था।
घटना के बाद, 21 मार्च को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने न्यायमूर्ति वर्मा से लिखित जवाब मांगा था। उन्होंने 22 मार्च को जवाब देकर सभी आरोपों को खारिज कर दिया। इसके बाद, तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय खन्ना ने उनके खिलाफ आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय आंतरिक समिति गठित कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी वेबसाइट पर इस मामले से जुड़े फोटो और वीडियो भी अपलोड किए थे।
30 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति वर्मा को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि उनका आचरण न्यायपालिका में भरोसा पैदा करने वाला नहीं है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि मुख्य न्यायाधीश सिर्फ "डाकघर" की तरह काम नहीं कर सकते, बल्कि राष्ट्र और न्यायपालिका की साख बनाए रखने का दायित्व भी निभाना होता है।
सुनवाई ‘XXX बनाम भारत संघ’ नाम से चल रही है, जिसमें न्यायमूर्ति वर्मा की पहचान सार्वजनिक नहीं की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने उनसे सवाल किया कि यदि उन्हें जांच समिति की प्रक्रिया पर आपत्ति थी, तो वे उसी समय उसे चुनौती क्यों नहीं दे पाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि उन्हें रिपोर्ट के खिलाफ सीधे सुप्रीम कोर्ट में अपील करनी चाहिए थी, न कि समिति के समक्ष पेश होकर बाद में आपत्ति जतानी चाहिए।
इस पूरे मामले ने न्यायपालिका में पारदर्शिता, नैतिकता और जवाबदेही को लेकर गंभीर बहस खड़ी कर दी है।
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