बचपन में कई बार माता-पिता को यह समस्या झेलनी पड़ती है कि बच्चे अचानक कमजोर, चिड़चिड़े या कमजोर पाचन वाले हो जाते हैं. अक्सर इसका कारण पेट में पनपने वाले कीड़े (Intestinal Worms) होते हैं. ये छोटे-छोटे परजीवी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट और आंतों की दीवारों में रहते हैं और शरीर के पोषक तत्वों को चुराते हैं.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, इसकी सबसे बड़ी वजह गंदगी और खराब हाइजीन है. गंदा पानी पीना, बिना हाथ धोए खाना, खुले में खेलने के बाद हाथ मुंह में डालना- ये आदतें बच्चों में संक्रमण का खतरा बढ़ाती हैं. कमजोर इम्यूनिटी वाले बच्चों को यह समस्या ज्यादा होती है.
WHO के मुताबिक, दुनिया की करीब 24% आबादी मिट्टी से फैलने वाले कीड़ों से संक्रमित है, खासकर वहां जहां स्वच्छता की कमी है.
पिनवर्म (Pinworm) व्हिपवर्म (Whipworm) टेपवर्म (Tapeworm) फ्लूक्स (Flukes) राउंडवर्म (Roundworm)
ये कीड़े शरीर में प्रोटीन और आयरन की कमी, एनीमिया और पोषण अवशोषण में रुकावट पैदा कर सकते हैं. लंबे समय तक अनदेखी करने पर बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर असर पड़ सकता है.
फेलिक्स हॉस्पिटल, नोएडा के चेयरमैन डॉ. डीके गुप्ता के अनुसार, बच्चों में पेट में कीड़े होने के मुख्य लक्षण ये हैं—
1. पेट दर्द और मरोड़ – खासकर नाभि के आसपास.
2. पाचन गड़बड़ – बार-बार दस्त या कब्ज.
3. भूख का पैटर्न बदलना – बहुत ज्यादा या बहुत कम भूख लगना.
4. नींद में खलल – रात में बार-बार उठना.
5. वजन कम होना – खाना खाने के बावजूद वजन न बढ़ना.
6. पेट फूलना – न्यूट्रिशन की कमी से पेट बाहर निकल आना.
7. कमजोरी और चिड़चिड़ापन – थकावट और सुस्ती.
8. मल में कीड़े दिखना – या एनल एरिया में खुजली होना.
डॉ. गुप्ता बताते हैं कि 2 साल से ऊपर के बच्चों को हर छह महीने पर डी-वॉर्मिंग की दवा (जैसे एल्बेंडाजोल) देनी चाहिए, लेकिन डॉक्टर की सलाह के बाद ही. इसके अलावा-
खाने से पहले और बाद में हाथ धोने की आदत डालें. नाखून छोटे और साफ रखें. बाहर का खाना और गंदा पानी न दें. फल-सब्जियां अच्छी तरह धोकर ही खिलाएं. नंगे पैर बाहर न जाने दें और घर के आसपास सफाई रखें.
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