Mouth Breathing : कई बार हम सुबह उठते हैं और महसूस करते हैं कि मुंह सूखा है या तकिए पर लार के निशान हैं. ये संकेत हो सकते हैं कि रात में हमने नाक के बजाय मुंह से सांस ली. सुनने में यह सामान्य लग सकता है, लेकिन लंबे समय तक ऐसा करना सेहत पर असर डाल सकता है. सामान्यतः हमारा शरीर नाक से सांस लेने के लिए बना है. नाक से हवा गुजरते समय साफ, गर्म और नम होती है, और नाक के अंदर छोटे-छोटे सिलिया और म्यूकस धूल, बैक्टीरिया और प्रदूषण को रोकते हैं.
1. नाक बंद होना: सर्दी-जुकाम, एलर्जी या साइनस की समस्या की वजह से नाक बंद हो जाती है, जिससे मुंह से सांस लेना पड़ता है.
2. बढ़े हुए एडेनॉइड्स या टॉन्सिल्स: बच्चों में अक्सर एडेनॉइड्स या टॉन्सिल्स बड़े हो जाते हैं, जिससे नाक का रास्ता बंद हो जाता है.
3. नाक की बनावट में गड़बड़ी: अगर सेप्टम टेढ़ा है या नाक में पॉलीप्स हैं, तो हवा का रास्ता रुक सकता है.
4. जबड़े या चेहरे की बनावट: कुछ लोगों के चेहरे या जबड़े की बनावट ऐसी होती है कि मुंह थोड़ा खुला रहता है, जिससे मुंह से सांस लेना आसान हो जाता है.
5. आदत या व्यवहार: बचपन में अंगूठा चूसने या मुंह खुला रखने की आदत से भी यह समस्या हो सकती है.
6. स्लीप एपनिया: यह नींद से जुड़ी समस्या है, जिसमें सोते समय सांस रुक-रुक कर चलती है। इस स्थिति में लोग मुंह खोलकर सांस लेते हैं.
1. मुंह का सूखापन और बदबूदार सांस: लार मुंह को साफ और नम रखती है. मुंह से सांस लेने पर लार सूख जाती है, जिससे बैक्टीरिया पनपते हैं और सांस से बदबू आती है.
2. दांत और मसूड़ों की समस्याएं: लार में खनिज होते हैं जो दांत मजबूत रखते हैं. मुंह सूखने से कैविटी और मसूड़ों की सूजन हो सकती है.
3. नींद की गुणवत्ता पर असर: मुंह से सांस लेने पर नींद खराब होती है. इससे स्लीप एपनिया जैसी समस्या हो सकती है और दिन में थकान, चिड़चिड़ापन और ध्यान केंद्रित करने में मुश्किल होती है.
4. बच्चों में चेहरे और दांतों की वृद्धि पर असर: लगातार मुंह से सांस लेने वाले बच्चों का चेहरा लंबा और जबड़ा पतला हो सकता है. दांत टेढ़े-मेढ़े हो सकते हैं और भविष्य में ऑर्थोडॉन्टिक इलाज की जरूरत पड़ सकती है.
5. ब्रेन फॉग और थकान: मुंह से सांस लेने पर शरीर में ऑक्सीजन की कमी होती है. इससे दिमाग ठीक से काम नहीं करता और व्यक्ति दिनभर सुस्ती और ब्रेन फॉग महसूस करता है.
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