प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से तियानजिन में मुलाकात की। यह मुलाकात शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान हुई। इस बैठक में दोनों नेताओं ने साफ कहा कि भारत-चीन संबंधों को किसी तीसरे देश की नजर से नहीं देखा जाना चाहिए। यह संकेत साफ तौर पर अमेरिका और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की आक्रामक नीतियों की ओर था, जिन्होंने भारत पर व्यापार को लेकर कई दबाव बनाए थे।
बैठक के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया। इसमें बताया गया कि मोदी और शी जिनपिंग ने कई बड़े मुद्दों पर बातचीत की, जिनमें आतंकवाद से लड़ाई, निष्पक्ष वैश्विक व्यापार और बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग बढ़ाना शामिल था। दोनों नेताओं ने यह भी जोर दिया कि मतभेदों को विवादों में नहीं बदलना चाहिए।
यह मुलाकात खास इसलिए भी मानी जा रही है क्योंकि सात साल बाद प्रधानमंत्री मोदी चीन पहुंचे हैं। साथ ही, गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद दोनों देशों के रिश्तों में आई ठंडक के बीच यह एक अहम कोशिश है। बैठक में मोदी और शी ने माना कि भारत और चीन प्रतिद्वंद्वी नहीं बल्कि विकास भागीदार हैं और दोनों देशों का सहयोग वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिर करने में मदद करेगा।
सीमा विवाद पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि बेहतर संबंधों के लिए सीमावर्ती इलाकों में शांति और सौहार्द जरूरी है। उन्होंने पिछले साल हुई सैन्य वापसी और उसके बाद की शांति को सकारात्मक कदम बताया। साथ ही, लोगों के बीच बेहतर संबंधों के लिए सीधी उड़ानों, वीज़ा सुविधा और कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने का मुद्दा भी उठाया गया।
मोदी ने इस दौरान चीन के राष्ट्रपति को भारत में 2026 में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में आमंत्रित भी किया, जिसे शी जिनपिंग ने स्वीकार कर लिया और भारत की अध्यक्षता का समर्थन भी दिया। इसके अलावा, प्रधानमंत्री ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की पोलित ब्यूरो स्थायी समिति की सदस्य कै की से भी मुलाकात की और भारत-चीन रिश्तों को आगे बढ़ाने में सहयोग की बात की।
कुल मिलाकर, यह मुलाकात भारत और चीन के बीच रिश्तों में नई सकारात्मकता लाने और तनाव कम करने की दिशा में अहम मानी जा रही है।
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