बॉलीवुड में कामयाबी की ऊंचाइयों को छूने वाले अनुपम खेर आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. 300 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुके इस मंझे हुए कलाकार की जिंदगी भी संघर्षों से होकर ही गुजरी है. लेकिन उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी सीख स्कूल या थिएटर से नहीं, बल्कि मुंबई की एक छोटी सी घटना से मिली. इस किस्से ने उन्हें सिखाया कि इमोशन और रियलिटी के बीच संतुलन कैसे बनाना होता है.
अनुपम खेर ने एक इंटरव्यू में उस दौर को याद किया जब वे अपने करियर की शुरुआत में थे. दूरदर्शन पर उनका एक नाटक प्रसारित हुआ था और पहली बार उन्हें एक पहचान मिलती दिखी. खुशी में उन्होंने अपने भाई और दोस्त के साथ जश्न मनाने का फैसला किया. जेब में केवल 1 रुपया था, लेकिन मन में था जज्बा और सपनों का अंबार. वे एक ढाबे पर पहुंचे जहां मालिक ने उन्हें पहचान लिया और तारीफ भी की.
मालिक की तारीफ से अनुपम इतने उत्साहित हो गए कि उन्होंने बीयर और चिकन ऑर्डर कर डाला, यह भूल गए कि जेब में महज एक रुपया है. खाना खत्म हुआ तो सामने आया 97 रुपये का बिल. अब हालात ऐसे थे कि न भाग सकते थे और न ही जेब में पैसे थे.
अनुपम खेर ने ढाबे के मालिक से कहा कि एक दिन वे बड़े एक्टर बनेंगे, लेकिन मालिक का जवाब उन्हें जिंदगी का सबसे बड़ा सबक दे गया. मालिक ने मुस्कुराते हुए कहा, “बिल देना तो पड़ेगा, तारीफ अपनी जगह है और बिजनेस अपनी जगह.” यह सुनते ही अनुपम को एहसास हुआ कि जिंदगी इमोशन्स पर नहीं, हकीकत पर चलती है.
उस स्थिति में अनुपम खेर ने अपने भाई और दोस्त को ढाबे पर बैठा छोड़ दिया और खुद एक जानकार के पास जाकर 100 रुपये उधार लिए. पैसे लौटाकर उन्होंने उस दिन की अपनी बेवकूफी पर मुस्कुराया, लेकिन साथ ही उस वक्त मिली सीख को हमेशा के लिए आत्मसात कर लिया.
यह किस्सा सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि अनुपम खेर की सोच का टर्निंग पॉइंट बन गया — जहां उन्होंने समझा कि तारीफें मिल सकती हैं, लेकिन जिम्मेदारियों से भागा नहीं जा सकता.
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