जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों पर कार्य करने वाली आंतरिक समिति (Internal Committee - IC) के छात्र प्रतिनिधियों के चुनाव नियमों को लेकर दायर याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने विश्वविद्यालय द्वारा बनाए गए चुनाव नियमों को बरकरार रखते हुए छात्रों की याचिका को खारिज कर दिया।
दिल्ली हाईकोर्ट ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के उस नियम को बरकरार रखा है, जिसमें कहा गया है कि यौन उत्पीड़न मामलों से निपटने वाली आंतरिक समिति (Internal Committee - IC) के चुनाव में हर छात्र तीनों वर्गों –
स्नातक (Undergraduate)
स्नातकोत्तर (Postgraduate)
शोध छात्र (Research Scholars)
में से प्रत्येक में एक वोट डाल सकता है। छात्रों के एक समूह ने इस नियम को गलत बताते हुए कोर्ट में चुनौती दी थी।
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की बेंच ने कहा कि: चुनावी प्रक्रिया में अदालत का हस्तक्षेप तभी उचित है जब कोई मजबूत और विश्वसनीय सबूत प्रस्तुत किया जाए। सिर्फ निर्णय से असहमति या धारणा के तौर पर पूर्वाग्रह का आरोप लगाने भर से चुनाव रद्द नहीं किए जा सकते।
कोर्ट ने साफ कर दिया है कि मतदान आधार को बढ़ाना “खेल के नियम बदलने” जैसा नहीं माना जा सकता। न्यायपालिका को जरूरी अवस्था के अलावा चुनाव प्रक्रियाओं में दखल देने से बचना चाहिए। बेंच ने आगे कहा कि इस मामले में चुनाव पारदर्शी, निष्पक्ष और लोकतांत्रिक तरीके से संपन्न हुए थे, इसलिए हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला छात्रों द्वारा उठाई गई आपत्तियों को अस्वीकार करते हुए JNU प्रशासन के चुनाव नियमों को वैध ठहराता है। यह निर्णय विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता और लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रिया के सम्मान की पुशन करता है।
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