भारत और चीन के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद के बीच अब रिश्तों में सुधार के संकेत दिखाई देने लगे हैं. इसी कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की रविवार को तियानजिन में मुलाकात होने की संभावना है. यह बैठक शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के इतर आयोजित की जाएगी. प्रधानमंत्री मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चीन की यात्रा पर रहेंगे. यह सात साल में उनकी पहली चीन यात्रा है, जिस कारण यह मुलाकात और भी अहम मानी जा रही है.
पूर्वी लद्दाख में मई 2020 में चीनी घुसपैठ के बाद भारत-चीन संबंधों में तनाव गहरा गया था. लेकिन हाल के महीनों में दोनों देशों ने बातचीत के जरिए विवाद कम करने की कोशिश की है. देपसांग मैदानी क्षेत्र और डेमचोक सेक्टर में गश्त के अधिकार पर दोनों सेनाओं ने सहमति जताई है. यह एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है.
2020 के गतिरोध के बाद दोनों देशों ने धीरे-धीरे भरोसा बहाल करने के प्रयास शुरू किए. मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू किया गया है, चीनी पर्यटकों को वीजा जारी किए जा रहे हैं और दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानों को बहाल करने पर विचार चल रहा है. ये कदम आपसी रिश्तों में नई गर्माहट लाने की दिशा में अहम माने जा रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी की आखिरी मुलाकात अक्टूबर 2024 में रूस के कजान में हुई ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी. उससे पहले, प्रधानमंत्री मोदी ने 2018 में चीन की यात्रा की थी. इस बार की मुलाकात ऐसे समय पर हो रही है जब भारत-अमेरिका संबंधों में टैरिफ विवाद को लेकर तनातनी बढ़ी है. इस कारण चीन के साथ रिश्तों में संतुलन बनाना भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से अहम माना जा रहा है.
हालांकि सकारात्मक संकेतों के बावजूद चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं. इस साल मई में भारत को यह सबूत मिले कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को चीन की ओर से सक्रिय समर्थन मिला था. इससे दोनों देशों के बीच बनी विश्वास की दीवार को फिर से झटका लगा.
तियानजिन में होने वाली मोदी-जिनपिंग की यह मुलाकात भारत-चीन संबंधों की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. सीमा विवाद, व्यापारिक रिश्ते और वैश्विक राजनीति की चुनौतियों के बीच यह बैठक सिर्फ द्विपक्षीय बातचीत नहीं, बल्कि एशिया की भविष्य की कूटनीति का आधार भी बन सकती है.
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