दिल्ली, जम्मू-कश्मीर और उत्तरी भारत में हाल ही में पकड़े गए जैश-ए-मोहम्मद के फिदायीन मॉड्यूल ने सुरक्षा एजेंसियों को हैरान कर दिया है. जांच में पता चला है कि यह मॉड्यूल किसी साधारण आतंकी नेटवर्क की तरह काम नहीं कर रहा था, बल्कि इसमें शामिल सभी सदस्य डॉक्टर थे—उच्च शिक्षित, तकनीकी तौर पर सक्षम और डिजिटल तरीके से संचालित. फॉरेंसिक जांच में इनके मोबाइल फोन से ऐसे चौंकाने वाले प्रमाण मिले हैं, जिनसे समझ आता है कि कैसे यह समूह महीनों से देश में बड़े आतंकी हमलों की तैयारी कर रहा था.
जांच एजेंसियों को आरोपियों के फोन से सिग्नल ऐप पर बना एक एन्क्रिप्टेड ग्रुप मिला है. इस ग्रुप का एडमिन फरार सरगना डॉक्टर मुज़फ़्फ़र था और इसमें डॉक्टर उमर, डॉक्टर मुजम्मिल, डॉक्टर आदिल और डॉक्टर शाहीन शामिल थे. इसी ग्रुप में विस्फोटकों की खरीद, स्टॉक, टेस्टिंग और हमलों की तैयारी से जुड़ी हर जानकारी साझा की जाती थी.
जांच में सबसे खतरनाक खुलासा डॉक्टर उमर की भूमिका को लेकर हुआ है. वह इस मॉड्यूल का मुख्य ऑपरेशनल प्रमुख था. उसकी जिम्मेदारियां थीं:
डिजिटल फुटप्रिंट्स से साफ है कि आतंकी प्लानिंग का अधिकांश बोझ डॉक्टर उमर ही उठा रहा था.
मॉड्यूल द्वारा खरीदे गए विस्फोटक और केमिकल डॉ. मुजम्मिल के किराए के घर में सुरक्षित रखे जाते थे. जब भी कोई नया स्टॉक आता, मुजम्मिल उसकी तस्वीर खींचकर ग्रुप में भेजता था ताकि सरगना और टीम यह सुनिश्चित कर सके कि सबकुछ सुरक्षित है. यही नहीं, मॉड्यूल द्वारा उपयोग की जाने वाली i20 कार की खरीद की जानकारी भी इसी ग्रुप में साझा की गई थी.
पूछताछ में एक और अहम नाम सामने आया—फैसल इशाक भट्ट. यह मॉड्यूल का जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा हैंडलर बताया गया है.
एजेंसियों को संदेह है कि यह भी एक फर्जी नाम है और पाकिस्तान स्थित जैश के नेटवर्क ने “कश्मीरी” नाम का उपयोग प्लॉज़िबल डिनायबिलिटी के लिए किया है.
जांच के बाद जैश-ए-मोहम्मद के चार बड़े पाकिस्तानी हैंडलरों के नाम उजागर हुए हैं:
बताया जा रहा है कि अफगानिस्तान में मुज़फ़्फ़र के गायब होने के बाद यही चार लोग मॉड्यूल को कंट्रोल कर रहे थे.
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