15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई शोले भारतीय सिनेमा की ऐसी फिल्म है जिसने दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी. 50 साल बाद भी इसके डायलॉग, किरदार और किस्से आज भी उतने ही ताजा हैं. गब्बर सिंह का ‘अरे ओ सांभा’ कहना, तुरंत मैक मोहन का चेहरा सामने ले आता है और यही चेहरा एक्ट्रेस रवीना टंडन के लिए सिर्फ एक कलाकार नहीं, बल्कि रिश्ते में मामा का है.
शोले के 50 साल पूरे होने के मौके पर रवीना ने सांभा को याद करते हुए कहा कि यह फिल्म उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा है. उन्होंने बताया, ‘शोले पहली हिंदी फिल्म थी जो मैंने अपनी बेटी राशा को दिखाई थी, जब वह फिल्म ट्रेनिंग का एक चैप्टर पढ़ रही थी. सांभा हमारे दिलों में हमेशा अमर रहेगा. मुझे दिग्गज डायरेक्टर रमेश सिप्पी के साथ काम करने का सौभाग्य मिला, जो मेरे करियर की बड़ी उपलब्धियों में से एक है.’
रवीना ने अपने मामा मैक मोहन के बारे में कहा, “वह हिंदी सिनेमा के सबसे पसंदीदा खलनायकों में से एक थे. लेकिन असल जिंदगी में वे बेहद नेकदिल इंसान थे. मुझे याद है, उन्होंने फिल्म काला पत्थर में एक शानदार किरदार निभाया था - एक ऐसा शख्स जो कार्ड खेलने में माहिर था, लेकिन दूसरों को बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान कर देता है. असल जिंदगी में भी वह ऐसे ही थे, हमेशा दूसरों के लिए त्याग करने वाले.’
रवीना ने काला पत्थर का वह सीन याद किया, जिसमें पानी का तेज बहाव मैक मोहन के किरदार को बहा ले जाता है. ‘मैं उस समय करीब चार साल की थी और थिएटर में यह सीन देखकर जोर-जोर से रोने लगी. पापा मुझे बाहर ले गए क्योंकि मैं सबको डिस्टर्ब कर रही थी, रवीना ने मुस्कुराते हुए कहा. मामा-भांजी का प्यारा रिश्ता
रवीना ने बताया कि वह मैक मोहन को ‘सीनियर’ कहकर बुलाती थीं और बदले में वह उन्हें ‘सेनोरिटा’ कहते थे. ‘वह सिर्फ बेहतरीन अभिनेता नहीं, बल्कि बेहद प्यारे इंसान थे. उनकी मौजूदगी हमेशा घर में खुशियां भर देती थी,” रवीना ने याद किया.
शोले के 50 साल पूरे होने का जश्न सिर्फ एक फिल्म की सफलता का नहीं, बल्कि उन यादों का भी है जो पीढ़ियों तक सुनाई जाएंगी. गब्बर और सांभा जैसे किरदार आने वाले दशकों तक भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर रहेंगे और रवीना के लिए यह मामा की मुस्कान और उनके सुनहरे दिल की हमेशा जीवंत याद बनकर रहेंगे.
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