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इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला… लखनऊ में ई-रिक्शा पंजीकरण के लिए ‘स्थायी निवासी’ शर्त हुई रद्द

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने लखनऊ में ई-रिक्शा पंजीकरण के लिए स्थानीय निवासी होने की अनिवार्य शर्त को निरस्त कर दिया. अदालत ने इसे समानता और व्यवसाय की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया. जानें पूरी कहानी और आदेश का असर.

👤 Samachaar Desk 29 Nov 2025 12:50 PM

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम निर्णय लेते हुए राजधानी लखनऊ में ई-रिक्शा पंजीकरण के लिए स्थानीय निवासी होने की अनिवार्य शर्त को निरस्त कर दिया है. अदालत ने स्पष्ट कहा कि यह शर्त समानता, व्यवसाय की स्वतंत्रता और जीवन के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है. यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की खंडपीठ ने अजीत यादव सहित चार याचिकाओं पर सुनवाई के बाद पारित किया.

याचिकाओं की पृष्ठभूमि

याचिकाओं में बताया गया कि 5 फरवरी 2025 को लखनऊ के सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी ने ई-रिक्शा पंजीकरण के संबंध में दो प्रमुख प्रतिबंध लगाए. पहला प्रतिबंध यह था कि जिस व्यक्ति के पास पहले से ई-रिक्शा पंजीकरण है, वह नया रिक्शा पंजीकरण नहीं करवा सकता. दूसरा प्रतिबंध यह लगाया गया कि केवल लखनऊ में स्थायी रूप से रहने वाला व्यक्ति ही नया ई-रिक्शा पंजीकरण करा सकता है. इन दोनों प्रतिबंधों को चुनौती दी गई थी. विशेष रूप से दूसरी शर्त को लेकर याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह गैर-न्यायसंगत और भेदभावपूर्ण है.

राज्य सरकार का तर्क और अदालत की प्रतिक्रिया

राज्य सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि लखनऊ में किराए पर रहने वाले ई-रिक्शा मालिकों को फिटनेस प्रमाणपत्र या अन्य नोटिस देने में दिक्कत होती है, क्योंकि उनका पता लगातार बदलता रहता है. लेकिन अदालत ने इस जवाब को संतोषजनक नहीं माना और इसे किसी को पंजीकरण से वंचित करने का उचित आधार नहीं माना.

अदालत का निर्णय और कारण

पीठ ने कहा कि ई-रिक्शा की संख्या को नियंत्रित करने के विकल्प अन्य तरीकों से भी संभव हैं. उदाहरण के तौर पर, एक वर्ष में निश्चित मात्रा में पंजीकरण करना या वैध फिटनेस प्रमाणपत्र न रखने वाले ई-रिक्शों को जब्त करना. लेकिन केवल स्थायी निवास की शर्त को आधार बनाकर पंजीकरण से इनकार करना मनमाना और अनुचित है.

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि व्यवसाय की स्वतंत्रता और समानता के अधिकार के प्रति इस तरह की शर्त संवैधानिक रूप से असंगत है. न्यायिक दृष्टिकोण से यह फैसला महत्वपूर्ण है क्योंकि यह व्यवसायियों के अधिकारों की रक्षा करता है और किसी भी तरह के मनमाने भेदभाव को खारिज करता है.

इस फैसले के बाद लखनऊ में ई-रिक्शा चालकों और नए निवेशकों के लिए रास्ता साफ हो गया है. अब लखनऊ में स्थायी निवासी न होने वाले लोग भी ई-रिक्शा पंजीकरण करा सकेंगे, जिससे व्यापार और परिवहन की संभावनाओं में वृद्धि होगी. अदालत ने व्यवसाय की स्वतंत्रता, नागरिक अधिकारों और समानता की रक्षा करते हुए स्पष्ट कर दिया कि कानून का उद्देश्य सुविधा प्रदान करना और न्याय सुनिश्चित करना होना चाहिए, न कि मनमानी शर्तों के जरिए किसी को वंचित करना.