हिंदू धर्म में एकादशी का स्थान अत्यंत पवित्र माना जाता है. हर माह दो बार आने वाली एकादशी न केवल व्रत और आध्यात्मिक साधना का दिन है, बल्कि यह मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करने का अवसर भी देती है. मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है. जैसा कि नाम से स्पष्ट है यह तिथि मोक्ष और मुक्ति प्रदान करने वाली मानी जाती है. धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन व्रत करने से न केवल पापों का क्षय होता है, बल्कि आत्मा को शांति और जीवन को नई दिशा मिलती है.
मोक्षदा एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है. मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से व्रत और पूजा करने से व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है. इसी तिथि पर गीता जयंती भी मनाई जाती है, क्योंकि माना जाता है कि मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन ही भगवान कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का दिव्य ज्ञान दिया था. इसीलिए इस दिन गीता-पाठ बेहद शुभ माना जाता है.
जैन परंपरा में यह तिथि मौन एकादशी के रूप में जानी जाती है. जैन श्रद्धालु दिनभर उपवास, साधना और आत्मचिंतन द्वारा आत्मशुद्धि और संयम का पालन करते हैं.
साल 2025 में मोक्षदा एकादशी 1 दिसंबर 2025 को पड़ रही है.
इस दिन सुबह 8:20 बजे से शाम 7:01 बजे तक भद्रा, और सुबह 6:56 से रात 11:18 बजे तक पंचक रहेगा. व्रतियों को इन स्थितियों का ध्यान रखते हुए पूजा-पाठ करना चाहिए.
भगवान विष्णु की प्रतिमा/फोटो, गंगाजल, कलश, पीले/सफेद वस्त्र, दीपक-घी, धूप, चंदन, पीले फूल, तुलसी पत्ते, पंचामृत, फल, पीली मिठाई, चावल, कुमकुम, पूजा थाली, मेवा तथा संभव हो तो तुलसी का पौधा.
मोक्षदा एकादशी केवल व्रत का दिन नहीं, बल्कि आत्मविश्लेषण, पवित्रता और दिव्यता से जुड़ने का अवसर है. इस एकादशी पर श्रद्धा, शांति और भक्ति के साथ की गई पूजा जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करती है.