सावन का महीना आते ही प्रकृति हरियाली की चादर ओढ़ लेती है और चारों तरफ भक्ति और उत्सव का माहौल बन जाता है. इस पवित्र मौसम में महिलाओं के हाथों में मेंहदी की खूबसूरत डिज़ाइन नजर आना आम बात है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि मेंहदी सिर्फ सौंदर्य बढ़ाने का माध्यम नहीं, बल्कि इसका गहरा धार्मिक और स्वास्थ्य संबंधी महत्व भी है?
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, सावन का महीना भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है. कहा जाता है कि इसी महीने माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था और पूजा में मेंहदी भी चढ़ाई थी. तभी से यह परंपरा बन गई कि सुहागन महिलाएं इस महीने में मेंहदी लगाकर माता पार्वती से सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मांगती हैं. ऐसा माना जाता है कि मेंहदी का रंग जितना गहरा होता है, पति का प्रेम भी उतना ही गहरा होता है.
भारतीय संस्कृति में सुहागन स्त्रियों के सोलह श्रृंगार का विशेष स्थान है. इसमें मेंहदी का स्थान अहम है. हरियाली तीज, सावन सोमवार जैसे पर्वों पर महिलाएं पूरे उत्साह से मेंहदी रचाती हैं. यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सौभाग्य, प्रेम और भक्ति का भी प्रतीक है.
1. तनाव से राहत:
मेंहदी का शीतल प्रभाव शरीर और मन दोनों को सुकून देता है. सावन की उमस में यह ठंडक प्रदान कर मानसिक तनाव को कम करने में मदद करती है.
2. नाखूनों की सुरक्षा:
मेंहदी में मौजूद एंटीबैक्टीरियल गुण नाखूनों और त्वचा को संक्रमण से बचाते हैं और उन्हें मजबूत बनाते हैं.
3. एंटी-एजिंग गुण:
इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट त्वचा को जवान बनाए रखने में सहायक होते हैं. यह दाग-धब्बों और झुर्रियों को कम करने में मदद करता है.
4. अच्छी नींद में सहायक:
मेंहदी का तेल सिर या तलवों पर लगाने से तनाव कम होता है और नींद बेहतर आती है.
5. घाव और जलन में राहत:
मेंहदी का एंटीसेप्टिक गुण घाव और जलन को जल्दी ठीक करता है और संक्रमण से बचाता है.
मेंहदी न केवल सावन की परंपरा का हिस्सा है, बल्कि यह भक्ति, सुंदरता और सेहत का भी प्रतीक है. इसलिए इस सावन, जब आप मेंहदी लगाएं, तो इसके हर पहलू का आनंद लें धार्मिक, सांस्कृतिक और औषधीय भी.