भारत में अवैध रूप से घुसे रोहिंग्या समुदाय को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई बेहद तीखी रही. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) सूर्यकांत की बेंच ने इस मामले में साफ-साफ कहा कि कुछ लोग घुसपैठियों के लिए नागरिकों जैसे अधिकार मांग रहे हैं, जबकि देश के सीमित संसाधनों पर सबसे पहले भारत के गरीबों का हक है.
सुनवाई के दौरान CJI ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि किसी भी अवैध तरीके से आए व्यक्ति को “शरणार्थी” कहना सिर्फ एक दावा है. क्योंकि भारत सरकार ने उन्हें कभी आधिकारिक रूप से शरणार्थी का दर्जा दिया ही नहीं.
याचिका में दावा किया गया था कि मई 2025 में दिल्ली पुलिस ने पांच रोहिंग्या लोगों को हिरासत में लिया था, लेकिन इसके बाद उनका कोई पता नहीं चला. याचिकाकर्ता ने कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की, ताकि इन लोगों को खोजा जा सके. जजों ने इस पर कहा कि यह मामला सीधे-सीधे हेबियस कॉर्पस, यानी बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका जैसा है. CJI ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “आप अवैध तरीके से देश में घुसे लोगों की रिहाई मांगने के लिए यह याचिका लेकर आए हैं? यह तरीका उचित नहीं है.”
जब याचिकाकर्ता ने दलील दी कि हिरासत में लिए गए रोहिंग्या लापता हो गए हैं, तब बेंच ने कड़ा रुख अपनाया. अदालत ने पूछा, “क्या हम बॉर्डर की फेंसिंग काटकर आए लोगों के लिए लाल कालीन बिछाकर स्वागत करें? घुसपैठ कर आए व्यक्ति नागरिकों जैसे अधिकार कैसे मांग सकते हैं?” कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि अवैध तरीके से सीमा पार करना अपने आप में एक गंभीर अपराध है, और ऐसे लोगों को देश की कानूनी सुरक्षा का अधिकार नहीं मिल सकता.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट का ध्यान इस बात पर दिलाया कि याचिकाकर्ता का उन पांच रोहिंग्या लोगों से कोई सीधा संबंध नहीं है. इस पर CJI ने कहा, “कुछ लोग चाहते हैं कि घुसपैठियों को भोजन, आश्रय और शिक्षा जैसे अधिकार मिल जाएं. लेकिन हमारे देश में बड़ी संख्या में गरीब लोग हैं—उनका हक पहले आता है.” अदालत ने कहा कि भारत को अपने नागरिकों की सुरक्षा, आजीविका और अधिकारों को प्राथमिकता देनी होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि उत्तर भारत की सीमाएं बेहद संवेदनशील हैं और हालात लगातार बदल रहे हैं. इसलिए घुसपैठियों के मुद्दे को सिर्फ मानवीय कोण से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़कर देखना होगा. याचिकाकर्ता की मांग पर कोर्ट ने इस मामले को आगे सुनने का फैसला किया और अगली सुनवाई की तारीख 16 दिसंबर तय की.