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सिर्फ 6 महीने में खत्म होगी टीबी! जानिए भारत सरकार की नई बी-पाल-एम तकनीक कैसे बदलेगी इलाज का तरीका

भारत में एमडीआर टीबी के इलाज के लिए सरकार ने बी-पाल-एम रेजिमेन को मंजूरी दी है. यह चार दवाओं पर आधारित छह महीने का मौखिक कोर्स है, जो पहले के लंबे इलाज से अधिक सुरक्षित और किफायती है.

👤 Samachaar Desk 13 Nov 2025 06:35 PM

ट्यूबरकुलोसिस यानी टीबी दुनिया की सबसे पुरानी और गंभीर बीमारियों में से एक है. भारत में हर साल लाखों लोग इस बीमारी से जूझते हैं. यह फेफड़ों को प्रभावित करने वाली एक संक्रामक बीमारी है, जो मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया से होती है. हालांकि, जब यह बीमारी सामान्य दवाओं से ठीक नहीं होती, तो इसे मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (एमडीआर टीबी) कहा जाता है. ऐसे मरीजों का इलाज अब तक लंबा और कठिन होता था, लेकिन अब इसमें राहत की खबर आई है.

बी-पाल-एम रेजिमेन क्या है?

भारत सरकार ने हाल ही में बी-पाल-एम (BPaLM) रेजिमेन तकनीक को मंजूरी दी है. यह नई चिकित्सा पद्धति चार दवाओं बेडाक्विलीन, प्रीटोमैनिड, लाइनजोलिड और मॉक्सीफ्लोक्सासिन से मिलकर बनी है. इन दवाओं का संयोजन एमडीआर टीबी के बैक्टीरिया पर सीधे असर डालता है और संक्रमण को जल्दी खत्म करने में मदद करता है.

इस तकनीक की खास बात यह है कि यह पूरी तरह मौखिक दवा (oral medicine) है, यानी मरीज को इंजेक्शन लेने की जरूरत नहीं पड़ती. साथ ही, इसका कोर्स सिर्फ छह महीने का है, जबकि पहले इलाज में 18 से 20 महीने तक का समय लगता था.

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के अनुसार, बी-पाल-एम रेजिमेन न केवल सुरक्षित है बल्कि पुराने इलाज की तुलना में किफायती भी है. सरकार इस दवा को मुफ्त में उपलब्ध कराएगी, जिससे मरीजों पर आर्थिक बोझ भी नहीं पड़ेगा.

मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट टीबी क्या होती है?

मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट टीबी तब होती है जब टीबी के बैक्टीरिया सामान्य दवाओं जैसे आइसोनियाजिड और रिफैम्पिसिन के असर से बच जाते हैं. यह समस्या तब बढ़ती है जब मरीज इलाज अधूरा छोड़ देते हैं या दवाओं का गलत तरीके से सेवन करते हैं.

एमडीआर टीबी के लक्षणों में शामिल हैं-

तीन हफ्ते से ज्यादा समय तक लगातार खांसी रहना खून के साथ खांसी आना तेज बुखार और रात में पसीना आना वजन में कमी और लगातार कमजोरी सीने में दर्द और थकान

यह बीमारी धीरे-धीरे शरीर को कमजोर करती है और इलाज में देरी होने पर यह जानलेवा भी हो सकती है.

सरकार की पहल और नया लक्ष्य

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस नई तकनीक को प्रधानमंत्री मोदी के 2025 तक टीबी मुक्त भारत के लक्ष्य के तहत मंजूरी दी है. इसके जरिये देशभर में करीब 75,000 एमडीआर टीबी मरीजों को लाभ मिलेगा.

अब जहां पहले मरीजों को डेढ़ साल तक दवा लेनी पड़ती थी, वहीं सिर्फ छह महीने में ही इलाज पूरा हो सकेगा. यह कदम टीबी के खिलाफ भारत की लड़ाई में एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है और लाखों मरीजों के जीवन में नई उम्मीद लेकर आया है.