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Janmashtami 2025: क्यों कहलाए श्रीकृष्ण 'माखनचोर'? जानें कान्हा की बाल लीलाओं की रोचक कथा

जन्माष्टमी 2025 का पर्व 16 अगस्त को मनाया जाएगा. यह दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की याद में मनाया जाता है. कृष्ण को उनके बचपन की माखन चोरी की प्यारी लीलाओं के कारण माखनचोर कहा जाता है.

👤 Samachaar Desk 16 Aug 2025 01:28 PM

हर साल भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. यह दिन भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है, जिनका जन्म द्वापर युग में इसी तिथि पर हुआ था. 2025 में जन्माष्टमी 16 अगस्त, शनिवार को मनाई जाएगी. इस दिन भक्त श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा-अर्चना करते हैं और घर-घर में भक्ति और उत्सव का माहौल रहता है.

भगवान विष्णु ने जब-जब पृथ्वी पर धर्म की रक्षा हेतु अवतार लिया, उनमें सबसे प्रिय और लोकप्रिय अवतार रहा श्रीकृष्ण का. श्रीकृष्ण को विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है. उनके जीवन में कई लीलाएं जुड़ी हैं, जिनसे उन्हें अलग-अलग नाम भी मिले, मुरलीधर, गोपाला, नंदलाला, कन्हैया और लड्डू गोपाल. इन्हीं नामों में से एक नाम है ‘माखनचोर’, जिसकी एक दिलचस्प कथा है.

कृष्ण और माखनचोरी की कथा

गोकुल में नंदबाबा और यशोदा मैया के लाल कान्हा को माखन बेहद प्रिय था. घर पर खूब माखन बनता और मां यशोदा उन्हें प्यार से खिलातीं. एक बार कृष्ण अपने मित्र मधुमंगल के घर गए. वहां खाने को कुछ न मिला, केवल बासी कढ़ी थी. मधुमंगल को यह उचित न लगा और उसने खुद ही सारी कढ़ी पी ली. जब कृष्ण ने कारण पूछा तो मधुमंगल ने बताया कि उसने कभी माखन नहीं खाया क्योंकि उसका परिवार निर्धन है.

यह सुनकर कृष्ण ने निश्चय किया कि वे अपने मित्र को प्रतिदिन माखन खिलाएंगे. तभी से वे मधुमंगल संग पड़ोसियों के घर जाकर माखन चुराने लगे और उसे खिलाते रहे. इसी कारण कान्हा को “माखनचोर” नाम मिला.

जब भी गोपियों ने कान्हा को माखन चुराते देखा, वे शिकायत लेकर यशोदा मैया के पास पहुंच जातीं. पहले तो यशोदा को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन एक दिन उन्होंने स्वयं कृष्ण को रंगे हाथ पकड़ लिया. गुस्से में पूछने पर नटखट कान्हा मुस्कुराकर बोले, “मैया, मैं चोरी नहीं करता. बस सबके घर के माखन का स्वाद चखता हूं ताकि जान सकूं किसका माखन सबसे स्वादिष्ट है.”

दही-हांडी का पर्व और माखनचोरी

जन्माष्टमी के दूसरे दिन दही-हांडी का पर्व मनाने की परंपरा है. यह कान्हा की इन्हीं माखन चोरी लीलाओं का प्रतीक है, जब मटकी तोड़कर नटखट बाल कृष्ण की शरारतों को याद किया जाता है.

इस प्रकार, श्रीकृष्ण का “माखनचोर” स्वरूप न सिर्फ उनकी नटखट लीलाओं का प्रतीक है, बल्कि सच्चे मित्र और निष्कपट भक्ति का अद्भुत संदेश भी देता है.