शिक्षक दिवस पर जब हम गुरुजनों को नमन करते हैं, तो दो नाम अपने आप चर्चा में आ जाते हैं। पहला नाम है सुपर 30 वाले आनंद कुमार और दूसरा नाम है 1 रुपया गुरु दक्षिणा वाले शिक्षक आर.के. श्रीवास्तव। दोनों ने अपनी गरीबी और संघर्ष की परवाह किए बिना, हजारों बच्चों की जिंदगी बदल दी।
आनंद कुमार का सफर बेहद कठिन था। कभी उन्हें परिवार चलाने के लिए पापड़ बेचना पड़ा, लेकिन उनके सपने बड़े थे। उन्होंने तय किया कि गरीब बच्चे भी आईआईटी में जा सकते हैं, बशर्ते उन्हें सही मार्गदर्शन मिले। इसी सोच से निकली सुपर 30 पहल, जिसने देश को सैकड़ों आईआईटियन दिए। उनकी इस महान सेवा का फल उन्हें तब मिला जब भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया।
दूसरी तरफ़, बिहार की मिट्टी ने जन्म दिया एक और महान शिक्षक को – आर.के. श्रीवास्तव। लोग उन्हें “1 रुपये गुरु दक्षिणा वाले गुरुजी” के नाम से जानते हैं। आर.के. श्रीवास्तव कभी ऑटो चलाकर जीवनयापन करते थे, लेकिन आज वे सिर्फ 1 रुपये की फीस लेकर गरीब छात्रों को पढ़ाते हैं। उनकी लगन और मेहनत से अब तक 950 से ज्यादा स्टूडेंट्स IIT तक पहुँच चुके हैं। यही नहीं, उनकी लोकप्रियता और सेवा भाव ने उन्हें राष्ट्रपति भवन तक पहुँचाया, जहाँ उन्होंने राष्ट्रपति के साथ लंच किया और सम्मानित हुए।
इन दोनों गुरुओं की कार्यशैली अलग हो सकती है, लेकिन मकसद एक ही है – गरीब बच्चों के सपनों को साकार करना। आज जब शिक्षा एक महँगा सौदा बन चुकी है और बड़े-बड़े कोचिंग संस्थान लाखों रुपये वसूलते हैं, वहीं आनंद कुमार और आर.के. श्रीवास्तव जैसे गुरु इस बात के प्रतीक हैं कि असली शिक्षा सेवा से मिलती है, न कि धन से।
आर.के. श्रीवास्तव को लोग “मैथमेटिक्स गुरु” भी कहते हैं। उनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि उनके बारे में देश के बड़े अखबारों और न्यूज़ पोर्टल्स में लगातार ख़बरें छपती रहती हैं। उनके छात्र कहते हैं कि वह सिर्फ शिक्षक ही नहीं, बल्कि प्रेरणा हैं।
यह सच है कि धन कोई भी छीन सकता है, लेकिन विद्या हमेशा साथ रहती है। यही कारण है कि आनंद कुमार और आर.के. श्रीवास्तव जैसे शिक्षक आज लाखों युवाओं के लिए उम्मीद और रोशनी के दीपक बने हुए हैं।