दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को देशभर के लॉ स्टूडेंट्स (कानून के छात्रों) को बड़ी राहत दी है। अदालत ने कहा कि किसी भी छात्र को कम अटेंडेंस (उपस्थिति) के कारण सेमेस्टर परीक्षा देने से नहीं रोका जा सकता। इसके साथ ही अदालत ने कानूनी शिक्षा के संचालन को लेकर कई महत्वपूर्ण दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। यह आदेश जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और अमित शर्मा की खंडपीठ ने जारी किया है।
अदालत ने साफ कहा कि देश के किसी भी लॉ कॉलेज को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के नियमों से हटकर अलग उपस्थिति नियम (Attendance Rules) बनाने का अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि कॉलेज छात्रों की अटेंडेंस की जानकारी नियमित रूप से छात्रों और उनके अभिभावकों को भेजें। इसके अलावा, जिन छात्रों की उपस्थिति कम है, उनके लिए अतिरिक्त क्लासेस चाहे ऑफलाइन हों या ऑनलाइन आयोजित की जानी चाहिए ताकि उन्हें कोर्स पूरा करने का मौका मिले।
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि देश के सभी लॉ कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों को एक Grievance Redressal Committee (GRC) बनाना अनिवार्य होगा। साथ ही अदालत ने UGC (University Grants Commission) को निर्देश दिया कि वह अपने नियमों में संशोधन करे ताकि GRC में 51% सदस्य छात्र हों। कोर्ट ने कहा कि छात्रों को अपनी समस्याओं को सीधे और प्रभावी तरीके से उठाने का पूरा प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
हाईकोर्ट ने BCI को निर्देश दिया कि कॉलेजों की संबद्धता की शर्तों में बदलाव किया जाए और इसमें काउंसलर और मनोचिकित्सक (psychologists) की उपलब्धता को अनिवार्य किया जाए ताकि छात्रों को मानसिक सहयोग मिल सके। इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि BCI को तीन वर्षीय और पाँच वर्षीय लॉ कोर्स में मूट कोर्ट (mock court practice) को भी क्रेडिट का हिस्सा बनाना चाहिए।
अदालत ने यह भी कहा कि वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए BCI को इंटर्नशिप की विस्तृत जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए। इसके तहत सीनियर वकीलों, लॉ फर्मों और कानूनी संस्थानों की सूची जारी की जाएगी जहाँ छात्र इंटर्नशिप कर सकें।