Logo

Guru Nanak Jayanti 2025 : कब हुआ था गुरु नानक जी का जन्म, जानें रोचक बातें..!

Guru Nanak Jayanti 2025 : गुरु नानक जयंती 2025, 5 नवंबर को मनाई जाएगी. गुरु नानक देव जी ने समानता, सेवा और सत्य का संदेश दिया. उनके तीन सिद्धांत- नाम जपना, किरत करना और वंड छकना आज भी प्रेरणा देते हैं.

👤 Samachaar Desk 03 Nov 2025 06:54 PM

Guru Nanak Jayanti 2025 : गुरु नानक देव जी सिख धर्म के प्रथम गुरु और मानवता के प्रतीक माने जाते हैं. इस वर्ष 5 नवंबर को उनकी जयंती, जिसे प्रकाश पर्व भी कहा जाता है, श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाएगी. उन्होंने अपने जीवन से यह सिखाया कि ईश्वर एक है और वह हर जीव में बसता है. उनके उपदेशों में सत्य, करुणा, समानता और सेवा का गहरा अर्थ छिपा है, जो आज भी समाज के लिए मार्गदर्शन का कार्य करते हैं.

गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को वर्तमान पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित ननकाना साहिब में हुआ था. उनके पिता मेहता कालू चंद स्थानीय अधिकारी थे और माता तृप्ता देवी धर्मपरायण स्वभाव की थीं. उनकी बहन बेबे नानकी ने बचपन से ही उनमें ईश्वर-भक्ति की भावना जगाई. नानक जी का विवाह माता सुलखनी जी से हुआ, जिनसे उन्हें दो पुत्र – श्रीचंद और लक्ष्मी दास हुए.

बचपन और आध्यात्मिक प्रवृत्ति

गुरु नानक देव जी बचपन से ही असाधारण प्रतिभा और आध्यात्मिक दृष्टि के धनी थे. वे अक्सर गहरे चिंतन में रहते और संसार की सच्चाई को समझने का प्रयास करते. जब उनके पिता ने उन्हें व्यापार सिखाने के लिए पैसे दिए, तो उन्होंने उन पैसों से भूखे साधुओं को भोजन कराया और कहा - “यह है सच्चा सौदा.” यह घटना उनके जीवन का मुख्य संदेश बन गई – सेवा ही सच्ची पूजा है.

गुरु नानक देव जी की चार उदासियां

गुरु नानक देव जी ने चार प्रमुख यात्राएं कीं, जिन्हें उदासियां कहा जाता है. उन्होंने भारत, नेपाल, तिब्बत, श्रीलंका, मक्का और बगदाद जैसे देशों की यात्रा कर वहां लोगों को सिखाया कि सभी धर्म एक ही ईश्वर की ओर ले जाते हैं. उन्होंने समाज में व्याप्त जात-पात, अंधविश्वास और असमानता का विरोध किया और प्रेम, एकता तथा समानता का संदेश दिया.

गुरु नानक जी की प्रमुख शिक्षाएं

नाम जपना: उन्होंने कहा कि ईश्वर का सच्चा स्मरण केवल शब्दों से नहीं, बल्कि मन और कर्म से होना चाहिए. किरत करना: ईमानदारी और मेहनत से जीवन यापन करना ही सच्ची भक्ति है. वंड छकना: अपनी कमाई का हिस्सा जरूरतमंदों के साथ बांटना आत्मिक शांति देता है.

इन तीन मूल सिद्धांतों के माध्यम से गुरु नानक देव जी ने समाज को सेवा, करुणा और सत्य का मार्ग दिखाया.

अंतिम समय और विरासत

गुरु नानक देव जी ने अपने अंतिम वर्ष करतारपुर में बिताए, जहां उन्होंने समानता और लंगर की परंपरा की नींव रखी. 22 सितंबर 1539 को उन्होंने वहीं देह त्याग किया और अपने शिष्य भाई लहणा जी को उत्तराधिकारी नियुक्त किया, जो आगे चलकर गुरु अंगद देव जी बने.

गुरु नानक देव जी का जीवन मानवता, प्रेम और एकता का प्रतीक है. उनकी शिक्षाएं आज भी समाज को यह संदेश देती हैं कि - “ईश्वर एक है, सभी मनुष्य उसके समान अंश हैं.”