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जापानी प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा का इस्तीफा, पार्टी में नई नेतृत्व लड़ाई शुरू

जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने लगातार दो चुनाव हारने और पार्टी के भीतर बढ़ते दबाव के बाद रविवार को इस्तीफ़ा दे दिया। उनके इस्तीफ़े से सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी में नया नेतृत्व चुनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।

👤 Saurabh 07 Sep 2025 03:40 PM

जापान के प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा ने रविवार को इस्तीफ़ा दे दिया। हाल के चुनावों में लगातार हार और पार्टी के अंदर बढ़ते दबाव के कारण उन्होंने यह कदम उठाया। उनके इस्तीफ़े से सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) में नया नेतृत्व चुनने की प्रक्रिया शुरू हो गई है।

68 वर्षीय इशिबा ने पिछले साल अक्टूबर में प्रधानमंत्री पद संभाला था। शुरुआत में उन्होंने इस्तीफ़ा देने से इनकार किया था और कहा था कि इस समय पद छोड़ने से राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ेगी। लेकिन दो बार चुनाव हारने के बाद पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने खुलकर उनकी आलोचना की और उनसे पद छोड़ने की मांग की। आखिरकार इशिबा को झुकना पड़ा।

एक टेलीविज़न प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, "मैंने पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने का फ़ैसला किया है। मैंने महासचिव से कहा है कि वे नए नेता के चुनाव की प्रक्रिया तुरंत शुरू करें।" इशिबा ने यह भी कहा कि जापान कई बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है – जैसे अमेरिकी टैरिफ, महँगाई, कृषि सुधार और एशिया में बढ़ते तनाव – लेकिन अब समय है कि नई पीढ़ी ज़िम्मेदारी संभाले।

पार्टी में अब नए नेता के चुनाव की दौड़ शुरू होगी। संभावित उम्मीदवारों में कृषि मंत्री शिंजिरो कोइज़ुमी और वरिष्ठ नेता साने ताकाइची का नाम सबसे आगे है। कोइज़ुमी पार्टी में उभरते हुए चेहरे माने जाते हैं, जबकि ताकाइची आर्थिक नीतियों पर अपनी सख़्त राय के लिए जाने जाते हैं।

इशिबा का प्रधानमंत्री रहते आख़िरी बड़ा काम अमेरिका के साथ व्यापार समझौता करना था। इस समझौते में जापानी सामानों पर अमेरिकी टैरिफ को घटाकर 25% से 15% किया गया और इसके बदले जापान ने 550 अरब डॉलर का निवेश करने का वादा किया। उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप को पत्र लिखकर दोनों देशों के रिश्ते को “स्वर्णिम युग” की ओर ले जाने की उम्मीद भी जताई थी।

विश्लेषकों का कहना है कि इशिबा का इस्तीफ़ा ज़रूरी था क्योंकि लगातार चुनावी हार के बाद उनका पद पर बने रहना मुश्किल हो गया था। अब नए प्रधानमंत्री के सामने चुनौती होगी कि वे जनता का भरोसा जीतें और पार्टी की गिरती साख को फिर से मज़बूत करें।