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नेपाल में राजनीतिक संकट गहराया, 9 मंत्रियों के इस्तीफे, सोशल मीडिया बैन और सड़कों पर Gen-Z रिवोल्यूशन!

Nepal protests 2025: नेपाल में सोशल मीडिया बैन के बाद मचा हंगामा. 9 मंत्रियों का इस्तीफ़ा, हिंसक प्रदर्शन और “Gen-Z रिवोल्यूशन” से ओली सरकार पर संकट गहराया.

👤 Samachaar Desk 09 Sep 2025 01:33 PM

नेपाल की राजनीति इन दिनों उथल-पुथल से गुजर रही है. सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस के नौ मंत्रियों के इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपनी पार्टी UML (यूनिफाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट) के मंत्रियों को साफ निर्देश दिया है कि वे किसी भी हाल में इस्तीफा न दें. ओली का मानना है कि जब गठबंधन के अन्य दल पीछे हट रहे हैं, तब UML के मंत्री मजबूती से पद पर बने रहकर सरकार को संभालें.

पीएम ओली की सुरक्षा को लेकर चिंता

सूत्रों के मुताबिक, हालिया प्रदर्शनों के बाद ओली अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. खबर है कि वह इलाज के बहाने दुबई जाने की तैयारी कर रहे हैं और इसके लिए हिमालय एयरलाइंस की उड़ान पर विचार हो रहा है. यह कदम ऐसे समय पर उठाया जा रहा है जब देशभर में प्रदर्शन तेज हो रहे हैं और सरकार पर दबाव बढ़ रहा है.

प्रदर्शनकारियों का गुस्सा हिंसा में बदला

सोमवार रात प्रदर्शनकारियों ने सूचना मंत्री पृथ्वीसुब्बा गुरुंग और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल के घरों में आगजनी की. भीड़ ने पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के आवास की ओर भी कूच किया. सरकार ने हिंसा की जांच के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित की है, जिसे 15 दिन में रिपोर्ट सौंपनी है. हालांकि खुद ओली को शक है कि समिति कोई ठोस निष्कर्ष जल्द पेश कर पाएगी.

नेपाल में विरोध की वजह

नेपाल में यह आंदोलन मुख्य रूप से सोशल मीडिया बैन, बढ़ते भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट को लेकर शुरू हुआ. 8 सितंबर से शुरू हुआ यह विरोध "Gen-Z रिवोल्यूशन" के नाम से फैल रहा है और देखते ही देखते हिंसक रूप ले चुका है. कर्फ्यू लागू होने के बावजूद मंगलवार को भी कई इलाकों में प्रदर्शन जारी रहे.

सोशल मीडिया बैन ने बढ़ाया विवाद

दरअसल, नेपाल सरकार ने 4 सितंबर को फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सऐप, रेडिट और एक्स (ट्विटर) सहित 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया. मंत्रालय का कहना था कि इन कंपनियों को 28 अगस्त से 7 दिन का समय दिया गया था ताकि वे सरकार से रजिस्ट्रेशन करा सकें. लेकिन समय सीमा खत्म होने तक किसी बड़े प्लेटफॉर्म ने आवेदन नहीं किया. इसके चलते सरकार ने बैन लागू कर दिया.

आलोचना और दबाव

सरकार के इस फैसले का पत्रकारों, वकीलों और सामाजिक संगठनों ने कड़ा विरोध किया है. आलोचकों का कहना है कि यह प्रतिबंध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की आज़ादी पर सीधा हमला है. यही वजह है कि युवा वर्ग सड़कों पर उतर आया और आंदोलन तेज हो गया.

नेपाल का यह राजनीतिक और सामाजिक संकट आने वाले दिनों में और गहराने की आशंका है. सवाल यह है कि क्या सरकार बैन वापस लेगी या टकराव और बढ़ेगा.