बच्चे के जन्म का अनुभव हर महिला के लिए बेहद खास होता है. इस दौरान की भावनाएं, डॉक्टरों की बातें, परिवार का साथ और बच्चे की पहली आवाज सब कुछ याद रहता है. लेकिन कई महिलाएं कहती हैं कि उन्हें लेबर पेन यानी प्रसव के दर्द की तीव्रता याद नहीं रहती. क्या सच में दिमाग दर्द की यादें मिटा देता है? आइए जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है और इसका क्या असर पड़ता है.
हर महिला का अनुभव अलग होता है. 2014 में जापान में हुई एक रिसर्च में 1,000 से ज्यादा महिलाओं को शामिल किया गया था. अध्ययन में पाया गया कि कई महिलाएं सालों बाद भी अपने प्रसव दर्द को याद रखती हैं, जबकि कुछ को इसकी बहुत कम याद रहती है.
2016 की एक और स्टडी के अनुसार, लेबर पेन को याद रखना या भूल जाना सिर्फ दर्द की तीव्रता पर नहीं, बल्कि मानसिक स्थिति, उस समय की परिस्थितियों और दर्द निवारण के विकल्पों पर निर्भर करता है. यानी दिमाग उस अनुभव को उसी रूप में याद रखता है, जैसा उसे महसूस कराया गया था.
कई महिलाएं कहती हैं कि उन्हें दर्द तो हुआ था, लेकिन अब याद नहीं कि वह कितना तेज था. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर के अंदर कुछ प्राकृतिक हार्मोनल परिवर्तन इस प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं.
बच्चे के जन्म के तुरंत बाद शरीर में ऑक्सीटोसिन नामक हार्मोन तेजी से बढ़ जाता है. यह वही हार्मोन है जो मां और बच्चे के बीच प्रेम और जुड़ाव को मजबूत बनाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह हार्मोन न केवल मां को भावनात्मक रूप से बच्चे से जोड़ता है, बल्कि दर्द की यादों को भी हल्का कर देता है.
कैलिफोर्निया की साइकोथेरैपिस्ट जेनेट बायरमयान के अनुसार, ऑक्सीटोसिन एक तरह से दर्द की यादों को कोमल बना देता है. इसलिए कई महिलाएं प्रसव के कुछ समय बाद उस दर्द को उतनी तीव्रता से याद नहीं कर पातीं.
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह प्रकृति का एक सुरक्षा तंत्र है. अगर हर महिला को पहले प्रसव का दर्द वैसा ही याद रहता, तो वे दोबारा गर्भधारण से डर सकती थीं. इसलिए शरीर खुद ही “सेलेक्टिव अम्नेशिया” यानी चुनिंदा याददाश्त का सहारा लेकर दर्द की स्मृति को धीरे-धीरे कमजोर कर देता है.
लेबर पेन याद न रहना या उसका कम महसूस होना बच्चे पर किसी भी तरह का नकारात्मक असर नहीं डालता. आज मेडिकल साइंस में कई पेन रिलीफ विकल्प जैसे एपिड्यूरल या गैस रिलीफ तकनीकें मौजूद हैं, जिनकी मदद से महिलाएं सुरक्षित और आरामदायक तरीके से डिलीवरी कर सकती हैं.