मां बनना किसी भी महिला के जीवन का सबसे अनमोल अनुभव होता है. यह सिर्फ एक नई शुरुआत नहीं, बल्कि जीवन की सबसे जिम्मेदार यात्रा की भी शुरुआत है. बच्चे के जन्म के बाद सबसे जरूरी कदम होता है उसे स्तनपान कराना, जो न केवल उसकी पोषण आवश्यकताओं को पूरा करता है बल्कि उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत बनाता है. लेकिन इस दौरान नई माताओं के मन में कई सवाल और उलझनें भी होती हैं. ऐसे में सही जानकारी और सावधानियां बेहद जरूरी हो जाती हैं.
नवजात शिशु को पहले महीने में दिनभर में 8 से 12 बार स्तनपान कराना चाहिए. मां का दूध हल्का और आसानी से पचने वाला होता है, इसलिए बच्चे जल्दी भूख महसूस करते हैं. बार-बार दूध पिलाने से बच्चे की भूख शांत होती है और मां के शरीर में दूध का प्रवाह भी संतुलित रहता है.
मां का आहार सीधे-सीधे दूध की गुणवत्ता पर असर डालता है. हरी पत्तेदार सब्जियां, प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन और विटामिन से भरपूर भोजन लेना जरूरी है. साथ ही, पर्याप्त पानी पीना और नींद पूरी करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है. यह न केवल मां की सेहत बनाए रखता है बल्कि बच्चे को भी बेहतर पोषण देता है.
स्तनपान कराने वाली माताओं को हाइजीन पर विशेष ध्यान देना चाहिए. रोजाना नहाना, साफ कपड़े पहनना और स्तन को बार-बार अनावश्यक छूने से बचना जरूरी है, ताकि संक्रमण का खतरा कम हो. यह बच्चे की सुरक्षा के लिए सबसे बुनियादी लेकिन महत्वपूर्ण कदम है.
स्तनपान के समय सही पोस्चर बेहद जरूरी है. कोशिश करें कि आप बैठकर बच्चे को दूध पिलाएं और उसका सिर आपके स्तन के स्तर पर हो. यह बच्चे के लिए सांस लेने में आसानी और सही तरीके से दूध पीने में मदद करता है. गलत पोस्चर से बच्चे को असुविधा हो सकती है और लंबे समय में मां की पीठ और कंधों में दर्द भी हो सकता है.
मां बनने के बाद जिम्मेदारियों का बोझ मानसिक दबाव में बदल सकता है, जो दूध के प्रवाह को प्रभावित करता है. ऐसे में मेडिटेशन, हल्की एक्सरसाइज, दोस्तों या परिवार से बातचीत और खुद के लिए थोड़ा समय निकालना मानसिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है.
ब्रेस्टफीडिंग केवल पोषण नहीं, बल्कि मां और बच्चे के बीच भावनात्मक जुड़ाव का भी माध्यम है. सही समय पर, सही तरीके से और सही देखभाल के साथ किया गया स्तनपान बच्चे की जिंदगी की मजबूत नींव रखता है और मां के लिए यह अनुभव जीवनभर की अनमोल याद बन जाता है.