शारदीय नवरात्रि के नौ दिन भक्त पूरे श्रद्धा के साथ मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं. इस समय घर और पंडालों में माता रानी की आराधना की जाती है, व्रत और कीर्तन करके वातावरण पवित्र बनाया जाता है. लेकिन नवरात्रि का दसवां दिन यानी विजयादशमी का दिन सबसे खास होता है, जब भक्त मां दुर्गा का विसर्जन करते हैं.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां दुर्गा अपने मायके आती हैं और नौ दिन भक्तों के बीच रहकर उन्हें सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं. विदाई के समय भक्तों की आंखें नम हो जाती हैं, क्योंकि उन्हें अगले वर्ष के पुनः आगमन तक प्रतीक्षा करनी होती है. इस वर्ष 2 अक्टूबर 2025 को दोपहर 02:56 बजे तक यह विधि पूरी की जा सकती है.
मां दुर्गा के विसर्जन से पहले शहरों और गांवों में शोभायात्रा का आयोजन किया जाता है. इस दौरान भक्त मां को धन्यवाद देते हैं और षोडशोपचार पूजन के तहत रोली, अक्षत, फल, फूल, मिठाई और वस्त्र अर्पित करते हैं. इसके बाद माता की आरती की जाती है और सिंदूर अर्पित कर परिवार के सदस्यों को लगाया जाता है.
ढोल-नगाड़ों और भजनों के साथ प्रतिमा को किसी पवित्र नदी या तालाब में प्रवाहित किया जाता है. यह परंपरा प्रकृति में लौटाने के प्रतीक के रूप में मानी जाती है. विसर्जन से पहले जल का छिड़काव आम के पत्तों से पूरे घर में किया जाता है और बचा हुआ जल पौधों में डाल दिया जाता है.
भक्तों का मानना है कि जल में प्रतिमा का विसर्जन मां का ब्रह्मांड में पुनः विलय होता है, ताकि अगले वर्ष वह और अधिक शक्तियों और आशीर्वाद के साथ लौटें. यह विदाई भावुक होते हुए भी उम्मीद और उत्साह का संदेश देती है.
विसर्जन के बाद मां दुर्गा केवल प्रतिमा के रूप में लौटती हैं, लेकिन उनकी कृपा और आशीर्वाद हमेशा भक्तों के साथ रहते हैं. हिंदू धर्म में यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और यह हमें जीवन में सकारात्मक सोच और ऊर्जा बनाए रखने की प्रेरणा देता है.
मां दुर्गा के विसर्जन का यह उत्सव न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि भक्तों के लिए भावनात्मक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी गहरा अर्थ रखता है.