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Navratri Third Day: कौन हैं मां चंद्रघंटा? कैसे पड़ा उनका ये नाम?

Navratri Third Day : नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा से साहस, आत्मबल और विजय की प्राप्ति होती है. उनका रूप देवशक्तियों का समागम है, जो भक्तों को संकटों से उबारता है.

👤 Samachaar Desk 24 Sep 2025 07:50 PM

Navratri Third Day : नवरात्रि केवल भक्ति और उपासना का अवसर नहीं है, बल्कि ये उस चेतना का भी उत्सव है जो हमें अपने भीतर छिपी शक्ति को पहचानने का साहस देती है. तीसरे दिन की पूजा, मां दुर्गा के तीसरे रूप मां चंद्रघंटा को समर्पित होती है- एक ऐसा स्वरूप जो सौम्यता और उग्रता का अद्भुत संतुलन है.

इनकी आराधना न सिर्फ मानसिक बल देती है, बल्कि जीवन के संकटों से लड़ने की प्रेरणा भी देती है.। तो आइए जानते हैं मां चंद्रघंटा के स्वरूप, उनके दिव्य अस्त्र-शस्त्रों, और इस दिन की विशेषता को विस्तार से.

मां चंद्रघंटा: सौंदर्य और पराक्रम की प्रतीक

मां चंद्रघंटा का नाम उनके मस्तक पर सुशोभित अर्धचंद्राकार स्वर्ण घंटा के कारण पड़ा. यह घंटा केवल एक आभूषण नहीं, बल्कि अधर्म का नाश करने वाली चेतना है. देवी की दस भुजाएं विविध देवताओं के द्वारा प्रदान किए गए अस्त्रों से सुसज्जित हैं और वे सिंह की सवारी करती हैं.

उनका ये तेजस्वी स्वरूप जहां एक ओर भक्तों को शांति, साहस और आत्मबल प्रदान करता है, वहीं दूसरी ओर दुष्ट शक्तियों के लिए विनाश का उद्घोष है.

देवी के दस दिव्य अस्त्र और उनके प्रतीक

हर शस्त्र का अपना एक गहरा अर्थ और प्रतीकात्मकता है, जो यह दर्शाता है कि धर्म की रक्षा केवल एक शक्ति से नहीं, बल्कि सामूहिक सहयोग से होती है.

भगवान शिव – त्रिशूल: यह त्रिकाल, त्रिगुण और त्रिदेव का प्रतिनिधि है. अधर्म का नाश और संतुलन की स्थापना करता है.

भगवान विष्णु – सुदर्शन चक्र: ये धर्म की गति और शुद्धि का प्रतीक है. इसकी गति से कोई दुष्ट बच नहीं सकता.

अग्निदेव – शूल (शक्ति): तेज और दहकती शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. अधर्म को भस्म कर देता है.

वायुदेव – धनुष-बाण: गति, लचीलापन और दूरदृष्टि का प्रतीक. मां ने इससे असुरों को दूर से ही नष्ट किया.

वरुणदेव – शंख: इसकी ध्वनि ही युद्धभूमि में दुष्टों को आतंकित कर देती है.

इंद्रदेव – वज्र और घंटा: वज्र दैत्यों का अभिमान तोड़ता है और घंटा उनका मानसिक संतुलन भंग करता है.

यमराज – कालदंड: न्याय और मृत्यु का प्रतीक. दुष्टों को उनके कर्मों का फल देता है.

कुबेर – गदा: स्थायित्व और शक्ति का प्रतीक.

सूर्यदेव – तलवार और ढाल: तलवार से अन्याय का संहार और ढाल से धर्म की रक्षा होती है.

मां को ‘चंद्रघंटा’ नाम कैसे मिला?

इस नाम के पीछे दो प्रमुख कथाएं प्रचलित हैं.

1. भगवान शिव का आशीर्वाद: विवाह के समय भगवान शिव ने देवी पार्वती को एक स्वर्ण घंटा भेंट किया था. यही घंटा उनके मस्तक पर अर्धचंद्राकार रूप में सुशोभित हुआ और उन्होंने नाम पाया- चंद्रघंटा.

2. इंद्रदेव का उपहार: एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब असुरों का आतंक बढ़ा, तो इंद्रदेव ने उन्हें एक दिव्य घंटा भेंट किया. इस घंटे की ध्वनि युद्धभूमि में असुरों के हृदय में भय उत्पन्न करती थी.

चाहे ये घंटा शिव की भेंट हो या इंद्र का उपहार- ये निश्चित है कि ये मात्र एक गहना नहीं, बल्कि एक दिव्य शस्त्र है जो असुरों के विनाश का कारण बना.

शास्त्रों में मां चंद्रघंटा का महत्व

मार्कंडेय पुराण और देवी भागवत पुराण में वर्णित है कि मां चंद्रघंटा की पूजा करने से साधक को दृढ़ मनोबल, पराक्रम और विजय की प्राप्ति होती है. उनके घंटे की ध्वनि से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और जीवन की कठिनाइयों का अंत होता है.

उनका ये रूप केवल एक देवी नहीं, बल्कि संपूर्ण देवशक्ति का समागम है. वे ये संदेश देती हैं कि जब-जब अन्याय बढ़ता है, तब-तब धर्म की रक्षा के लिए हर शक्ति एकजुट होती है.