31 अगस्त 2025 को राधा अष्टमी मनाई जाएगी. इस दिन वृषभानु जी की लाडली राधा रानी का जन्म हुआ था. कृष्ण जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन बाद राधा अष्टमी का पर्व मनाया जाता है. शास्त्रों में मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा तभी पूर्ण मानी जाती है जब भक्त राधा जी को स्मरण करता है. बिना राधा रानी के नाम के कृष्ण की प्रार्थना अधूरी मानी जाती है.
राधा जी को अनेक नामों से जाना जाता है. शास्त्रों में उनके 28 दिव्य नाम बताए गए हैं, जिनका स्मरण भक्तों के लिए अत्यंत शुभ फलदायी माना गया है. इनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं,
1. राधा
2. रासेश्वरी
3. वृन्दावन विहारिणी
4. सर्ववन्द्या
5. श्रीकृष्ण वल्लभा
6. वृषभानु सुता
7. मूल प्रकृति
8. परमेश्वरी
9. राधिका
10. भवव्याधि-विनाशिनी
मान्यता है कि इन नामों के जाप से भक्त को भक्ति, मोक्ष और सांसारिक सुख की प्राप्ति होती है.
धार्मिक मान्यता है कि राधा जी को श्रीकृष्ण की आत्मा और उनकी शक्ति कहा गया है. यदि कोई भक्त श्रीकृष्ण की कृपा पाना चाहता है तो पहले राधा जी का स्मरण करना आवश्यक है. यही कारण है कि हम "राधे-कृष्ण" कहते हैं, "कृष्ण-राधे" नहीं.
शास्त्रों में एक कथा आती है, व्यास मुनि के पुत्र शुकदेव जी तोते के रूप में राधा जी के महल में रहते थे और सदैव "राधा-राधा" का जाप करते थे. एक दिन राधा जी ने उन्हें केवल "कृष्ण-कृष्ण" नाम जपने को कहा. धीरे-धीरे पूरा नगर कृष्णमय हो गया और किसी के मुख से राधा का नाम आना बंद हो गया.
कृष्ण जी ने जब यह देखा तो वे उदास हो गए. उन्होंने नारद जी से कहा – "अब कोई राधा का नाम नहीं लेता, जबकि मुझे राधा का नाम सुनकर प्रसन्नता होती है." यह सुनकर राधा जी की आंखें नम हो गईं और उन्होंने शुकदेव जी को पुनः "राधा-राधा" जाप का आदेश दिया. तभी से परंपरा बन गई कि कृष्ण से पहले राधा का नाम लिया जाए.
राधा अष्टमी केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि प्रेम, भक्ति और समर्पण का प्रतीक है. राधा जी के नाम का जाप करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और भक्त श्रीकृष्ण की असीम कृपा प्राप्त करता है.