बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले विशेष मतदाता सूची संशोधन (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (ECI) पर सख्त टिप्पणी की है। अदालत ने स्पष्ट किया कि वोटर लिस्ट की सफाई करना एक संवैधानिक प्रक्रिया है, लेकिन इसका समय चुनावों से जोड़ना उचित नहीं है. अदालत ने कहा कि अंतिम सूची के बाद कोई भी वंचित व्यक्ति अपने अधिकार के लिए चुनौती नहीं दे पाएगा.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि मतदाता सूची से गैर-नागरिकों को हटाना जरूरी है और यह काम संविधान के तहत चुनाव आयोग की ज़िम्मेदारी है. अदालत ने आयोग से तीन अहम सवाल पूछे और इस प्रक्रिया की पारदर्शिता पर चिंता जताई.
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि आपका (ECI) कदम गलत नहीं है, लेकिन समस्या है इसका समय... क्यों SIR को चुनावों से जोड़ा गया है? यह प्रक्रिया चुनावों से अलग क्यों नहीं हो सकती? कोर्ट ने यह भी कहा कि जब वोटर लिस्ट एक बार फाइनल हो जाती है, तो अदालत उसमें कोई दखल नहीं दे सकती. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति गलत तरीके से सूची से हटाया गया, तो उसके पास अपना अधिकार बचाने का कोई रास्ता नहीं बचेगा.
ECI की तरफ से दलील दी गई कि यह पहली बार है जब सूची को पूर्ण कंप्यूटराइजेशन के बाद संशोधित किया जा रहा है और इसके पीछे व्यावहारिक कारण हैं. चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से यह आग्रह भी किया कि वह अंतिम सूची बनने से पहले उसे देखने का अवसर पाए. पुनरीक्षण की प्रक्रिया पूरी होने दें। उसके बाद आपकी लॉर्डशिप पूरी तस्वीर देख सकते हैं... हम इसे फाइनल होने से पहले दिखाएंगे," – ECI के वकील
कांग्रेस और आरजेडी समेत कई विपक्षी दलों ने इस संशोधन पर आपत्ति जताई है। अधिवक्ता संकरणारायणन ने इस कवायद को "पूरी तरह मनमानी और भेदभावपूर्ण" करार दिया. 2003 से पहले तक नागरिकता का अनुमान आपके पक्ष में था, लेकिन अब 5 बार वोट देने के बाद भी वह मान्यता नहीं मिलती.'
एक और बड़ा मुद्दा यह है कि ECI ने जिन 11 दस्तावेजों को मान्य किया है, उसमें आधार कार्ड शामिल नहीं है। इस पर अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पूरी दुनिया आधार को पहचान रही है, फिर ECI इससे क्यों बच रहा है?
वहीं वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, ये कौन होते हैं यह कहने वाले कि हम नागरिक हैं या नहीं? इसका भार उनके पास होना चाहिए, न कि हमारे पास. चुनाव आयोग की दलील थी कि आधार को नागरिकता प्रमाण के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता, जो गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है.