बीमारी आने पर इंसान का सारा ध्यान जल्द से जल्द स्वस्थ होने पर होता है. इलाज की प्रक्रिया में मरीज और परिजन मानसिक, शारीरिक और आर्थिक तौर पर थक जाते हैं. लेकिन इलाज पूरा होने के बाद जब अस्पताल से डिस्चार्ज का समय आता है, तभी एक नई परेशानी सामने आती है – फाइनल बिल. ये बिल कई बार इतनी भारी रकम में आता है कि लोगों को समझ ही नहीं आता कि इतने पैसे किस बात के लिए वसूले जा रहे हैं.
ज्यादातर मरीज और उनके परिवार वाले फाइनल बिल को बिना अच्छे से जांचे ही पेमेंट कर देते हैं. लेकिन यs बहुत बड़ी भूल हो सकती है. अस्पताल के बिल में कई मद होते हैं – जैसे कमरे का किराया, दवाइयों का खर्च, डॉक्टर की फीस, अलग-अलग जांच की फीस और सबसे अहम – टैक्स यानी जीएसटी. यहीं पर अक्सर अस्पताल गड़बड़ी करते हैं और फालतू टैक्स जोड़ देते हैं, जिसका पता अधिकांश लोगों को नहीं चलता.
लोगों को ये जानकारी ही नहीं होती कि कौन-सी स्वास्थ्य सेवाएं टैक्स फ्री हैं और किन पर टैक्स लगता है. यही जानकारी की कमी अस्पताल वालों के लिए सुनहरा मौका बन जाती है. वे डॉक्टर की सलाह, सामान्य टेस्ट, या इलाज जैसी सेवाओं पर भी जीएसटी जोड़ देते हैं, जबकि ये सेवाएं वास्तव में टैक्स फ्री होती हैं.
डॉक्टर की फीस और डायग्नोस्टिक टेस्ट पर टैक्स जोड़ना (जबकि ये टैक्स फ्री होते हैं) पेशेंट रूम पर 5% से ज्यादा जीएसटी लगाना दवाओं और मेडिकल इक्विपमेंट पर 18% तक टैक्स जोड़ना (जबकि वास्तविक टैक्स 5% से 12% के बीच होता है)
अगर आप अस्पताल में भर्ती हुए हैं और डिस्चार्ज के समय फाइनल बिल मिल रहा है, तो उसे सिर्फ एक नजर में देखकर पेमेंट न करें. पूरा बिल ध्यान से पढ़ें और देखिए कि:
डॉक्टर की सलाह और बेसिक इलाज पर टैक्स जोड़ा गया है या नहीं कौन-सी दवाओं पर कितना टैक्स लिया जा रहा है पेशेंट रूम के किराए में जीएसटी की दर क्या है
अगर किसी भी चीज पर शंका हो, तो तुरंत अस्पताल के बिलिंग सेक्शन से पूछें और उसका समाधान लें.
बीमारी के बाद वित्तीय बोझ से बचना भी उतना ही जरूरी है जितना इलाज कराना. अस्पताल के बिल को समझदारी से पढ़कर और गैर जरूरी टैक्स हटवाकर आप हजारों रुपये बचा सकते हैं.
ध्यान रखें – बीमारी की दवा डॉक्टर दे सकता है, लेकिन बिल की सुरक्षा आपको खुद करनी होगी. इसलिए हर बार डिस्चार्ज से पहले बनें स्मार्ट पेशेंट और अस्पताल के बिल में हर पंक्ति की गहराई से जांच करें.