जब हम उदास होते हैं, अकेलापन महसूस करते हैं या किसी अपनों से बिछड़ जाते हैं, तो हमारी आंखों से आंसू बहना एक आम प्रतिक्रिया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये केवल भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक बायोलॉजिकल प्रोसेस है? हमारे मन में उस समय कई हार्मोन एक्टिव हो जाते हैं, जो हमारे मूड, शरीर और सोचने के तरीके को प्रभावित करते हैं.
दुख या तनाव के समय सबसे पहले एक्टिव होने वाला हार्मोन है कोर्टिसोल, जिसे स्ट्रेस हार्मोन कहा जाता है. यह शरीर को सचेत करता है, लेकिन इसकी अधिकता से ब्लड प्रेशर बढ़ता है, नींद खराब होती है और इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है. लंबे समय तक ये एक्टिव रहा तो थकान, चिड़चिड़ापन और एंग्जायटी बढ़ सकती है.
जब हमें गहरा सदमा लगता है या डर सताता है, तो एड्रेनालिन नामक हार्मोन तेजी से शरीर में फैलता है. इससे दिल की धड़कन बढ़ जाती है, पसीना आता है और हाथ-पैर कांपने लगते हैं. ये हार्मोन शरीर को "फाइट या फ्लाइट" मोड में डाल देता है, जिससे हम या तो लड़ते हैं या भागते हैं- लेकिन भीतर की बेचैनी बनी रहती है.
सेरोटोनिन एक ऐसा न्यूरोट्रांसमीटर है जो हमें स्थिर और पॉजिटिव बनाए रखता है. लेकिन दुख की स्थिति में इसका स्तर गिरने लगता है, जिससे मन भारी हो जाता है, निगेटिव विचार आने लगते हैं और लंबे समय तक रहने पर डिप्रेशन का खतरा बढ़ जाता है.
दुख आना जीवन का हिस्सा है, लेकिन उसमें फंसे रह जाना सही नहीं. आप ध्यान, योग, नींद, पौष्टिक भोजन और अपनों से बातचीत जैसे तरीकों से अपने हार्मोनल असंतुलन को कंट्रोल कर सकते हैं.
हमारी भावनाएं सिर्फ दिल की नहीं, दिमाग की भी प्रतिक्रिया होती हैं. जैसे खुशी में डोपामाइन हमें उड़ान देता है, वैसे ही दुख में कोर्टिसोल, एड्रेनालिन और सेरोटोनिन हमारे व्यवहार और सोच को गहराई से प्रभावित करते हैं. फर्क बस इतना है- खुशी को हम अपनाते हैं, दुख को हम समझना भूल जाते हैं.