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ट्रम्प के टैरिफ के बाद भारत में सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों पर एक नजर

अमेरिका ने भारत के दो-तिहाई निर्यात पर 50% टैरिफ लगाया है, जिससे कपड़ा, रत्न-आभूषण, चमड़ा, कृषि और ऑटोमोबाइल जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।

👤 Saurabh 27 Aug 2025 03:41 PM

अमेरिका ने हाल ही में भारत के निर्यात पर ऐतिहासिक रूप से सबसे कड़े व्यापार टैरिफ लागू किए हैं। बुधवार, 27 अगस्त 2025 से, अमेरिका ने भारत के करीब दो-तिहाई निर्यात पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है। यह दर पहले की 25 प्रतिशत टैरिफ की तुलना में दोगुना है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के अनुसार, यह कदम भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल और रक्षा उपकरणों की खरीद को लेकर उठाया गया है।

भारत का निर्यात और टैरिफ का असर

थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, भारत हर साल अमेरिका को लगभग 86.5 अरब डॉलर का सामान निर्यात करता है। इसमें से करीब 60 अरब डॉलर के सामान पर अब 50 प्रतिशत टैरिफ लगेगा। सरकारी आंकड़े थोड़े कम बताते हैं, लेकिन अनुमान है कि 48.2 अरब डॉलर के निर्यात पर इसका सीधा असर पड़ेगा। इस कारण, निर्यात करना महंगा और अव्यावसायिक हो सकता है, जिससे नौकरियों पर असर और आर्थिक वृद्धि धीमी हो सकती है।

सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र GTRI के अनुसार, सबसे ज्यादा प्रभावित श्रम-प्रधान क्षेत्र हैं:

कपड़ा और परिधान: अमेरिका को भारत का वस्त्र निर्यात 10.8 अरब डॉलर का है। अब टैरिफ बढ़ने से मूल्य प्रतिस्पर्धा खत्म हो जाएगी।

रत्न और आभूषण: 10 अरब डॉलर के निर्यात में 52 प्रतिशत टैरिफ लगने से सूरत, मुंबई और जयपुर के उद्योग प्रभावित होंगे।

चमड़ा और जूते: अब 50 प्रतिशत टैरिफ लगेगा, जिससे आगरा, कानपुर और तमिलनाडु के क्लस्टर खतरे में हैं।

कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ: बासमती चावल, चाय और मसाले जैसी चीजों पर भी 50 प्रतिशत शुल्क लगेगा।

हस्तशिल्प और कालीन: जोधपुर, मुरादाबाद, भदोही जैसे शहरों में उत्पादन प्रभावित होगा।

टैरिफ-मुक्त उत्पाद

भारत का लगभग 30 प्रतिशत निर्यात अभी भी टैरिफ-मुक्त रहेगा। इसमें दवाइयाँ, सक्रिय दवा सामग्री (API), स्मार्टफोन, इलेक्ट्रॉनिक्स के कुछ गियर और तकनीकी रूप से कुछ विशिष्ट उत्पाद शामिल हैं।

निष्कर्ष

नए टैरिफ से भारत के निर्यात केंद्रों और श्रम-प्रधान क्षेत्रों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। नौकरियों पर खतरा बढ़ सकता है और भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता घट सकती है। इस अवसर का लाभ अन्य एशियाई देश जैसे चीन, वियतनाम और इंडोनेशिया उठा सकते हैं।