एक घर सिर्फ चार दीवारें नहीं, बल्कि पूरी जिंदगी की कमाई और सपनों का ठिकाना होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक छोटी-सी लापरवाही या अधूरी जांच आपको सालों तक कोर्ट और कागजों के चक्कर में डाल सकती है?
आजकल प्रॉपर्टी से जुड़े फ्रॉड के मामले तेजी से बढ़े हैं. लोग बिना पूरी जांच किए जल्दबाजी में घर खरीद लेते हैं और बाद में उन्हें कानूनी पचड़ों और झगड़ों का सामना करना पड़ता है. इसलिए घर खरीदना सिर्फ "पैसा देकर रजिस्ट्री करवाना" नहीं है- बल्कि सोच-समझ और डॉक्युमेंट वेरिफिकेशन से भरा एक गंभीर फैसला है.
घर खरीदने से पहले सबसे जरूरी है यह सुनिश्चित करना कि प्रॉपर्टी वैध है और विक्रेता इसका असली मालिक है. आज के डिजिटल युग में यह जांच करना काफी आसान हो गया है. लगभग हर राज्य सरकार ने ऑनलाइन पोर्टल बना दिए हैं जहां आप जमीन के रिकॉर्ड चेक कर सकते हैं.
उत्तर प्रदेश में आप [भूलेख पोर्टल](https://upbhulekh.gov.in) पर खसरा नंबर डालकर देख सकते हैं:
जमीन का असली मालिक कौन है. रजिस्ट्री वैध है या नहीं. किसी तीसरे पक्ष का दावा तो नहीं है.
इससे आप कई संभावित धोखों से बच सकते हैं.
सेल डीड और रजिस्ट्री पेपर
यही दस्तावेज तय करते हैं कि आप प्रॉपर्टी के कानूनी मालिक बन सकते हैं या नहीं.
एनओसी (No Objection Certificate)
बिल्डर या विक्रेता के खिलाफ कोई कानूनी विवाद तो नहीं चल रहा? यह सर्टिफिकेट जरूरी है.
एन्कम्ब्रेंस सर्टिफिकेट (Encumbrance Certificate)
इससे पता चलता है कि प्रॉपर्टी पर किसी बैंक का कर्ज या किसी तरह का बकाया लोन तो नहीं है.
बिल्डर की मंजूरी और नक्शे की पासिंग
अगर आप फ्लैट खरीद रहे हैं तो यह जांचें कि स्थानीय अथॉरिटी ने भवन को अप्रूव किया है या नहीं.
सोसाइटी रजिस्ट्रेशन और कानूनी मान्यता
फ्लैट लेने से पहले उस सोसाइटी की लीगल स्टेटस भी चेक करें.
घर एक बार खरीदा जाता है और अगर इसके दस्तावेजों में गड़बड़ी निकल आई, तो आपका समय, पैसा और मानसिक शांति- तीनों दांव पर लग सकते हैं. रियल एस्टेट में फ्रॉड से बचने का सबसे अच्छा तरीका है जानकारी और सतर्कता. जितना समय आप फर्नीचर और पेंट चुनने में लगाते हैं, उतना ही ध्यान डॉक्युमेंट वेरिफिकेशन पर भी दीजिए.