शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन, 29 सितंबर 2025 को, मां कालरात्रि की पूजा का विशेष महत्व है. मान्यताओं के अनुसार, इस दिन मां कालरात्रि की विधिवत उपासना करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और भक्तों को मानसिक शांति और शक्तियों की प्राप्ति होती है.
मां दुर्गा के नौ रूपों को नवदुर्गा कहा जाता है, जिनमें सातवां रूप मां कालरात्रि का है. इसे महासप्तमी भी कहते हैं. नवदुर्गाओं में मां कालरात्रि को सबसे शक्तिशाली माना जाता है. उनका शरीर काला, बाल लंबे और खुले, गले में मुंडों की माला और चार भुजाएं हैं. बाएं हाथ में लोहे का कांटेदार अस्त्र, दूसरे हाथ में कटार है. दायां हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में और नीचे वाला हाथ भक्तों को सुरक्षा का आश्वासन देता है. उनका प्रिय भोग गुड़ है, और उन्हें लाल वस्त्र तथा रातरानी के फूल अति प्रिय हैं.
प्राचीन काल में शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोक में आतंक मचा रखा था. देवताओं ने शिवजी से मदद मांगी. शिवजी ने माता पार्वती का आशीर्वाद लिया, जिन्होंने दुर्गा का रूप धारण कर दानवों का वध किया. इस युद्ध में शुंभ-निशुंभ मारे गए, लेकिन रक्तबीज के रक्त के हर कतरे से नए असुर उत्पन्न हो रहे थे. तब मां कालरात्रि प्रकट हुई और अपने कटार से रक्तबीज का सिर धड़ से अलग कर उसके रक्त को अपने मुंह में भर लिया.
सातवें दिन का विशेष महत्व यह है कि छह दिन की पूजा के बाद हमारे मन का सहस्त्र चक्र केंद्रित और शुद्ध होता है. इस दिन मां कालरात्रि की आराधना करने से ब्रह्मांड की सभी सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं.
विशेष रूप से मंत्र “ऊं देवी कालरात्रि नम:” का जाप करना चाहिए. इसे करने से सभी असुरी शक्तियां समाप्त होती हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.
मां कालरात्रि को शुभांकरी देवी भी कहा जाता है. उनकी उपासना से जीवन में डर और नकारात्मक शक्तियों का अंत होता है और भक्तों को साहस, शक्ति और सुरक्षा की प्राप्ति होती है.