पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने एक अहम सुझाव देते हुए कहा है कि अब समय आ गया है कि सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर को लेकर चल रहे विवाद का स्थायी हल निकाला जाए। उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की कि पाकिस्तान को न दिए जाने वाले चिनाब नदी के पानी का इस्तेमाल करके पंजाब और हरियाणा के बीच के जल विवाद को सुलझाया जा सकता है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि केंद्र सरकार ने हाल ही में जानकारी दी थी कि सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया गया है, जिससे अब भारत को चिनाब नदी का पानी इस्तेमाल करने का मौका मिला है। भगवंत मान का मानना है कि इस पानी को पंजाब के भाखड़ा, पौंग या रणजीत सागर जैसे बांधों के ज़रिए लाया जा सकता है और इसके लिए नई नहरों और ढांचे की जरूरत होगी, जिसे पंजाब में बनाया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सबसे पहले इस पानी का इस्तेमाल पंजाब की जरूरतें पूरी करने के लिए होना चाहिए और फिर जो पानी बचे, वह हरियाणा और राजस्थान को दिया जा सकता है। इससे पंजाब की भूजल पर निर्भरता घटेगी और खेती के लिए नहरों से पानी मिलने लगेगा, जिससे किसान लाभान्वित होंगे और भविष्य की पीढ़ियों के लिए पानी बचाया जा सकेगा।
मुख्यमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि एसवाईएल नहर अब जरूरी नहीं है, और अगर चिनाब और शारदा-यमुना लिंक से अतिरिक्त पानी यमुना और ब्यास नदियों में मोड़ा जाए, तो हरियाणा और दिल्ली की ज़रूरतें पूरी हो सकती हैं। इससे पंजाब में एसवाईएल को लेकर तनाव भी नहीं बढ़ेगा, जो कि एक संवेदनशील और भावनात्मक मुद्दा है।
उन्होंने यह भी बताया कि पंजाब को अब तक तीन नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) से केवल 40% पानी ही मिला है, जबकि बाकी 60% पानी उन राज्यों को दिया जा रहा है जिनसे ये नदियाँ नहीं गुजरतीं। उन्होंने कहा कि पंजाब की भूजल स्थिति गंभीर है, 75% इलाके ओवर-एक्सप्लॉइटेड हैं और ट्यूबवेलों की संख्या तेजी से बढ़ी है। भूजल का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिससे राज्य को नुकसान हो रहा है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जल बंटवारे को लेकर पुराने फैसलों और समझौतों की अब दोबारा समीक्षा होनी चाहिए, क्योंकि पर्यावरण और हालात बदल चुके हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जैसे हरियाणा रावी-ब्यास से पानी मांगता है, उसी तरह पंजाब को यमुना से अपना हक मिलना चाहिए।
आखिर में, उन्होंने यह भी मांग की कि बाढ़ के कारण जो नुकसान सिर्फ पंजाब को होता है, उसका मुआवज़ा बाकी भागीदार राज्यों को देना चाहिए, क्योंकि लाभ सब मिलकर उठाते हैं, लेकिन नुकसान अकेले पंजाब को झेलना पड़ता है।