Annapurna Jayanti 2025: मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को अन्नपूर्णा जयंती के रूप में मनाया जाता है. ये दिन श्रद्धा, भक्ति और उत्साह का प्रतीक है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन माता पार्वती ने संसार के पोषण और कल्याण के लिए अन्नपूर्णा का रूप धारण किया था. देवी अन्नपूर्णा को अन्न, समृद्धि और भोजन की अधिष्ठात्री माना जाता है. उनका आशीर्वाद घर में कभी भी अन्न और धन की कमी नहीं होने देता.
इस वर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा 4 दिसंबर 2025 को पड़ रही है. इस दिन की पूजा और आराधना से घर-परिवार में समृद्धि और मंगल ऊर्जा का संचार होता है.
धार्मिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने ये दिखाने की इच्छा जताई कि भोजन का जीवन में महत्व नहीं है. वे तपस्या और वैराग्य के माध्यम से जीवन के मूल तत्वों का ज्ञान देते रहे, परंतु अन्न के महत्व को समझाना भी जरूरी था.
कथा के अनुसार, भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि अन्न का वास्तविक महत्व नहीं है. इससे माता पार्वती अप्रसन्न हुईं और उन्होंने संसार से अन्न को लुप्त कर दिया. कुछ समय में धरती पर अकाल छा गया और लोग भूख से परेशान हो गए. स्वयं भगवान शिव भी अन्न के अभाव में कष्ट झेलने लगे.
तब उन्होंने माता अन्नपूर्णा के सामने भिक्षा पात्र रखा और अन्न के लिए याचना की. माता अन्नपूर्णा ने अन्न प्रदान किया और दुनिया में भोजन, पोषण और समृद्धि पुनः लौट आई. इस कथा से यह संदेश मिलता है कि अन्न ही जीवन का आधार है और उसका सम्मान करना सबसे बड़ा धर्म है.
1. अन्नदान और भोजन कराना- भूखे और जरूरतमंदों को भोजन कराना सबसे पुण्यदायी कार्य माना जाता है. इससे जीवन में समृद्धि, आशीर्वाद और अन्न की कमी नहीं होती.
2. रसोई की स्वच्छता- मां अन्नपूर्णा को स्वच्छता बहुत प्रिय है. रसोई को साफ-सुथरा रखना और भोजन शुद्ध मन से बनाना देवी की कृपा आकर्षित करता है.
3. अन्नपूर्णा मंत्र का जाप- "ॐ अन्नपूर्णे सदापूर्णे" मंत्र का नियमित पाठ घर में सकारात्मक ऊर्जा, शांति और समृद्धि लाता है.
4. गरीब और पशुओं को भोजन कराना- भूखे मनुष्य या पशुओं को खाना देना मां अन्नपूर्णा के प्रिय कार्यों में शामिल है. इससे करुणा बढ़ती है और देवी का आशीर्वाद जीवन में मिलता है.
5. भोजन का सम्मान- भोजन को ईश्वर का प्रसाद मानकर कभी व्यर्थ न फेंकें. अन्न का सम्मान करना देवी अन्नपूर्णा की पूजा का सबसे बड़ा रूप है.